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मोक्ष प्राप्त करने का निर्धारण क्या करता है?

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मोक्ष की ओर: अंतिम यात्रा का सच्चा निर्धारण
साधक, जीवन के अंतिम चरण में जब मन अनेक प्रश्नों से घिरा होता है, तब मोक्ष की खोज सबसे गहरा और महत्वपूर्ण विषय बन जाता है। यह उलझन स्वाभाविक है, क्योंकि मोक्ष केवल एक लक्ष्य नहीं, बल्कि आत्मा की शाश्वत शांति का स्वरूप है। आइए, भगवद गीता के अमृतवचन से इस रहस्य को समझें और अपने अंतर्मन को सुकून दें।

🕉️ शाश्वत श्लोक

भगवद गीता, अध्याय 18, श्लोक 66
सanskrit:
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥
हिंदी अनुवाद:
सभी धर्मों को त्यागकर केवल मेरी शरण में आओ। मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर मोक्ष दिलाऊंगा। इसलिए शोक मत करो।
सरल व्याख्या:
यह श्लोक बताता है कि मोक्ष पाने के लिए सबसे महत्वपूर्ण है पूर्ण समर्पण। जब हम अपने सारे कर्तव्य और कर्मों की उलझनों को छोड़कर भगवान की शरण में आ जाते हैं, तभी मोक्ष की प्राप्ति संभव होती है। यह समर्पण मन की शांति और विश्वास से होता है, न कि केवल कर्मों या ज्ञान से।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. समर्पण ही मोक्ष का मूल मंत्र है: कर्मों और नियमों के बंधन से ऊपर उठकर ईश्वर की शरण में जाना मोक्ष का निर्धारण करता है।
  2. मन की शुद्धता और विश्वास: जो मन पूर्ण श्रद्धा और विश्वास से भगवान में डूबा रहता है, वही अंतिम मुक्ति को पाता है।
  3. कर्मों का फल छोड़ देना: कर्म करते रहो, पर फल की इच्छा और चिंता छोड़ दो। यही मोक्ष की दिशा है।
  4. अहंकार और मोह का त्याग: मोक्ष का मार्ग अहंकार, लालच और मोह से मुक्त होकर चलता है।
  5. सतत ध्यान और भक्ति: भगवान के नाम का स्मरण और भक्ति मन को स्थिर करता है, जिससे मोक्ष की प्राप्ति आसान होती है।

🌊 मन की हलचल

शिष्य, यह स्वाभाविक है कि जब जीवन के अंतिम पड़ाव पर हम अपने कर्मों, अपने रिश्तों और अपने अस्तित्व के बारे में सोचते हैं, तो मन में भय, अनिश्चितता और चिंता उत्पन्न होती है। "क्या मेरा जीवन सफल रहा? क्या मेरा मोक्ष सुनिश्चित है?" ये प्रश्न अक्सर मन को बेचैन करते हैं। लेकिन याद रखो, यह यात्रा अकेली नहीं है। हर आत्मा की यात्रा में ईश्वर का प्रकाश साथ होता है।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

“हे प्रिय, जब तू थक जाएगा, जब राहें कठिन लगेंगी, तब मुझमें समर्पित हो जाना। मैं तेरे सारे पाप और बंधनों को धो डालूंगा। मोक्ष केवल कर्मों का फल नहीं, बल्कि मेरे प्रति तेरे प्रेम और विश्वास का फल है। मैं तुझे अकेला नहीं छोड़ूंगा।”

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक वृद्ध गुरु ने अपने शिष्य से कहा, "देखो, नदी का पानी समुद्र में मिलने के बाद ही अपनी यात्रा पूरी करता है। जैसे नदी अपने सारे रास्ते, बाधाएं और मोड़ पार कर समुद्र में मिलती है, वैसे ही आत्मा अपने सारे कर्मों और बंधनों को पार कर परमात्मा में विलीन होती है।"
याद रखो, मोक्ष का निर्धारण इस बात से नहीं कि कितने कर्म किए, बल्कि इस बात से होता है कि अंतिम समय में तुम अपने मन को किसके हवाले करते हो।

✨ आज का एक कदम

आज अपने मन में यह संकल्प करो कि तुम अपने कर्मों को भगवान के चरणों में समर्पित कर दोगे। फल की चिंता छोड़कर अपने कर्तव्य निभाओ और हर दिन भगवान का स्मरण करो।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने जीवन के अंतिम समय में भी अपने मन को शांति और समर्पण की ओर ले जा सकता हूँ?
  • क्या मैं अपने कर्मों के फल से ऊपर उठकर भगवान की शरण में आ सकता हूँ?

🌼 मोक्ष की ओर बढ़ता हुआ मन: शांति और विश्वास का संगम
साधक, मोक्ष का निर्धारण केवल कर्मों या ज्ञान से नहीं, बल्कि अपने मन को ईश्वर की शरण में समर्पित करने से होता है। यह समर्पण ही अंतिम यात्रा को सरल, सुंदर और शाश्वत बनाता है। तुम अकेले नहीं हो; हर पल भगवान तुम्हारे साथ हैं। उनके चरणों में पूर्ण श्रद्धा और विश्वास रखो, और देखो कैसे जीवन के अंतिम क्षण भी प्रकाशमय हो उठते हैं।
शुभकामनाएँ और शांति सदैव तुम्हारे साथ हो। 🙏✨

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