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क्या गीता में मृत्यु के क्षण में क्या होता है, इसका वर्णन किया गया है?

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जीवन के अंतिम क्षण: मृत्यु के पार भी एक नई शुरुआत है
साधक, जब जीवन की डगर अंतिम पड़ाव पर पहुंचती है, तब मन में अनेक प्रश्न और आशंकाएँ जन्म लेती हैं। मृत्यु का क्षण ऐसा नहीं है जहाँ सब कुछ समाप्त हो जाए, बल्कि यह एक नयी यात्रा का आरंभ होता है। भगवद गीता में इस विषय पर गहन और शाश्वत ज्ञान दिया गया है, जो हमारे भय और अनिश्चितताओं को दूर कर सकता है।

🕉️ शाश्वत श्लोक

"यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः।
तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम।।"

(अध्याय 18, श्लोक 78)

अनुवाद: जहाँ योग के भगवान कृष्ण और धनुर्धर अर्जुन होते हैं, वहाँ निश्चित ही विजय, समृद्धि और स्थायी नीति-मार्ग होता है।
(यह श्लोक मृत्यु के समय भी श्रीकृष्ण के साथ होने की महत्ता दर्शाता है।)

"मृत्युर्मां तीर्त्वा भवता: सर्वभूतानि संयुगे।
तत्र तिष्ठसि संयुगे च मे पार्थ नैनं स्मरशः।।"

(अध्याय 11, श्लोक 32)

अनुवाद: हे पार्थ! युद्ध में मैं मृत्यु हूँ, और जो मुझसे मिलते हैं, वे पुनर्जन्म के बंधन से मुक्त हो जाते हैं। इसलिए युद्ध में डरो मत।
(यह मृत्यु को अंत नहीं, बल्कि एक रूपांतरण के रूप में देखता है।)

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. आत्मा अमर है, मृत्यु केवल शरीर का अंत — "न जायते म्रियते वा कदाचि" (अध्याय 2, श्लोक 20)। मृत्यु के क्षण में आत्मा शरीर को छोड़कर नई यात्रा पर निकलती है।
  2. मृत्यु के समय मन की स्थिति महत्वपूर्ण है — जो मन शांत और ईश्वर के स्मरण में होता है, उसकी आत्मा उच्च लोकों को प्राप्त होती है।
  3. श्रीकृष्ण का स्मरण मृत्यु के भय को हरता है — मृत्यु के समय भगवद स्मरण से मन को स्थिर रखना चाहिए।
  4. धर्म और कर्म का फल मृत्यु के बाद भी चलता रहता है — इसलिए जीवन में धर्म और कर्म पर ध्यान देना आवश्यक है।
  5. मृत्यु अंत नहीं, परिवर्तन है — गीता हमें सिखाती है कि मृत्यु एक द्वार है, जहाँ से आत्मा एक नए शरीर या नए रूप में प्रवेश करती है।

🌊 मन की हलचल

मृत्यु का विचार आते ही मन में भय, अनिश्चितता और कभी-कभी अकेलेपन का अनुभव होता है। "क्या होगा मेरे बाद?" "क्या मैं तैयार हूँ?" ये सवाल स्वाभाविक हैं। पर याद रखो, यह भय तुम्हारे अज्ञान से उपजता है, और ज्ञान ही इसे मिटा सकता है। मृत्यु का भय नहीं, बल्कि जीवन की गहराई को समझना आवश्यक है।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे साधक, जब तुम्हारा शरीर इस लोक से विदा होगा, तब भी तुम्हारी आत्मा अमर रहेगी। तुम्हारा मन यदि मुझमें स्थिर रहेगा, तो मृत्यु तुम्हारे लिए केवल एक परिवर्तन होगी, एक नया जन्म होगा। भय मत मानो, क्योंकि मैं तुम्हारे साथ हूँ, हर सांस में, हर पल में। मुझे स्मरण करो, और शांति तुम्हारे हृदय में वास करेगी।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक वृक्ष था जो अपनी पत्तियाँ खोने को डरता था। वह सोचता था, "मेरी पत्तियाँ चली जाएँगी, मैं मर जाऊँगा।" पर ऋतु बदली, पत्तियाँ झर गईं, और नये पत्ते खिल उठे। वृक्ष ने जाना कि उसकी आत्मा, उसकी जड़ें, और जीवन की ऊर्जा हमेशा बनी रहती है। मृत्यु भी कुछ ऐसा ही है — शरीर का परिवर्तन, पर जीवन का निरंतर प्रवाह।

✨ आज का एक कदम

आज के दिन अपने मन में यह संकल्प लें कि आप मृत्यु को अंत नहीं, एक नए आरंभ के रूप में देखेंगे। दिन में कम से कम पाँच बार भगवान या अपने प्रिय किसी आध्यात्मिक विचार का स्मरण करें, जिससे मन शांति और स्थिरता पाए।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं मृत्यु को केवल अंत मानकर अपने जीवन को सीमित कर रहा हूँ?
  • क्या मेरा मन मृत्यु के समय स्थिर और शांति में रह सकता है?

अंत नहीं, एक नई शुरुआत
साधक, मृत्यु का क्षण भय का नहीं, शांति और मुक्ति का क्षण है। भगवद गीता का संदेश यही है कि आत्मा अमर है, और मृत्यु केवल एक परिवर्तन। तुम अकेले नहीं हो, कृष्ण तुम्हारे साथ हैं। अपने मन को स्थिर रखो, और मृत्यु के पार भी अपने अस्तित्व की अनंत यात्रा को समझो।
शांति और प्रेम के साथ,
आपका गुरु

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