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जब जीवन प्रश्न करता है, गीता समाधान देती है

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गीता के अनुसार, अपने अंदर की ओर मुड़ने का सही समय कब है?

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अंदर की ओर मुड़ने का सही समय — जीवन का सबसे मधुर क्षण
प्रिय आत्मा, जब जीवन के सफर में उम्र के पन्ने धीरे-धीरे पलटते हैं, तब मन अक्सर एक गहन प्रश्न से घिर जाता है — “क्या अब मैं अपने भीतर की ओर मुड़ूं? क्या अभी सही समय है?” यह प्रश्न बहुत ही स्वाभाविक है, क्योंकि उम्र के साथ अनुभवों का भंडार बढ़ता है, और मृत्यु की छाया भी कभी-कभी नजदीक महसूस होती है।
यह जानना जरूरी है कि गीता हमें न केवल समय बताती है, बल्कि यह भी समझाती है कि अंदर की ओर मुड़ना कोई कालबद्ध कार्य नहीं, बल्कि एक जागरूकता का फल है। आइए, श्रीमद्भगवद्गीता के प्रकाश में इस प्रश्न का उत्तर खोजें।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 6, श्लोक 5-6
उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥६-५॥

हिंदी अनुवाद:
अपने आप को अपने ही द्वारा उठाना चाहिए, न कि अपने आप को ही नीचा गिराना चाहिए। क्योंकि आत्मा अपने लिए ही मित्र है और उसी के लिए शत्रु भी।
सरल व्याख्या:
जब भी आप अपने अंदर झांकते हैं, तो याद रखें कि आपका सबसे बड़ा साथी और सबसे बड़ा विरोधी आप स्वयं ही हैं। आत्म-उत्थान का सही समय तब है जब आप अपने मन को मित्र की तरह समझें, न कि शत्रु की तरह।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. अभी भी समय है, हर पल है सही समय: गीता कहती है, "कर्म करो, फल की चिंता मत करो।" अंदर की ओर मुड़ने के लिए कोई आखिरी घड़ी नहीं होती। जब भी आपका मन शांति की ओर झुके, वही सही समय है।
  2. मृत्यु से भय न रखें, जीवन को समझें: मृत्यु अंत नहीं, एक परिवर्तन है। गीता में कहा गया है कि आत्मा अजर-अमर है, इसलिए जीवन के अंतिम पड़ाव पर भी भय न करें, आत्मा की ओर देखें।
  3. ध्यान और समाधि का अभ्यास करें: गीता में योग का महत्व बताया गया है। ध्यान के माध्यम से मन को नियंत्रित कर, हम अपने अंदर की सच्चाई से जुड़ सकते हैं।
  4. स्वयं को मित्र बनाएं: जैसा श्लोक में कहा गया, आत्मा का सबसे बड़ा मित्र बनना सीखें। स्वयं के प्रति दया और प्रेम ही आत्म-ज्ञान का पहला कदम है।
  5. वर्तमान में जिएं, अतीत और भविष्य के बंधनों से मुक्त हों: गीता हमें वर्तमान क्षण में जीने का उपदेश देती है। अंदर की ओर मुड़ना वर्तमान में जागरूक होने का नाम है।

🌊 मन की हलचल

"कभी-कभी लगता है कि उम्र ने सब कुछ छीन लिया है, अब क्या बचा है? क्या अब भी मैं बदल सकता हूँ? क्या अब भी मेरी आत्मा जाग सकती है?"
ऐसे सवाल मन को बेचैन करते हैं। यह ठीक है कि समय के साथ शरीर कमजोर पड़ता है, पर आत्मा की शक्ति कभी कम नहीं होती। यह बेचैनी आपकी चेतना की आवाज़ है, जो आपको सही दिशा दिखाने को तत्पर है।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे प्रिय शिष्य, समय का बंधन तुम्हें भ्रमित न करे। हर सांस के साथ तुम्हारे पास आत्मा की ओर लौटने का अवसर है। मृत्यु को अंत मत समझो, इसे एक नए आरंभ के रूप में देखो। अपने मन को स्थिर करो, अपने कर्मों को शुद्ध करो, और मुझ में विश्वास रखो। मैं तुम्हारा मार्गदर्शक हूँ, तुम्हारा सहारा हूँ।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक वृद्ध वृक्ष की कल्पना करो, जिसने कई मौसम देखे, कई तूफान झेले। जब पतझड़ आता है, तो वह अपने पुराने, सूखे पत्तों को गिरा देता है। पर वह वृक्ष निरंतर जड़ें गाढ़ा करता रहता है, गहराई में जाकर जीवन का पोषण लेता है। उसी तरह, जब जीवन के पत्ते झड़ने लगें, तो भीतर की जड़ों को मजबूत करना चाहिए। यही वह समय है जब वृक्ष अपनी सच्ची शक्ति को महसूस करता है।

✨ आज का एक कदम

आज के दिन, कम से कम 10 मिनट अपने मन को शांत करके बैठें। अपनी सांसों पर ध्यान दें और अपने भीतर के उस मित्र से संवाद करें, जो हमेशा आपके साथ है। उस मित्र को पहचानने की कोशिश करें।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने अंदर छुपे मित्र को पहचान पा रहा हूँ?
  • क्या मैं अपने मन को शत्रु समझकर उसे नीचा तो नहीं दिखा रहा?
  • क्या मैं वर्तमान में पूरी तरह से जी रहा हूँ, या अतीत और भविष्य की चिंता में उलझा हूँ?

🌼 जीवन के अंत में भी नई शुरुआत होती है
प्रिय आत्मा, याद रखो — तुम्हारा अंदर का संसार अनंत है, और उसे खोजने का सही समय अब है। उम्र या मृत्यु का भय तुम्हें रोक न सके। हर पल तुम्हारे पास आत्मा के प्रकाश में लौटने का अवसर है। मैं तुम्हारे साथ हूँ, हर कदम पर।
शांति और प्रेम के साथ,
तुम्हारा गुरु।

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