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गीता की शिक्षाओं के माध्यम से व्यसन को कैसे दूर करें?

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अंधकार से प्रकाश की ओर: व्यसन से मुक्ति का मार्ग
साधक, व्यसन की जंजीरों में फंसे मन को छुड़ाना कठिन प्रतीत होता है, परंतु याद रखो, तुम अकेले नहीं हो। हर आत्मा में परिवर्तन और सुधार की असीम शक्ति होती है। भगवद गीता की दिव्य शिक्षाएँ तुम्हें इस अंधकार से बाहर निकालने का प्रकाश स्तंभ बन सकती हैं। चलो, इस यात्रा की शुरुआत साथ करते हैं।

🕉️ शाश्वत श्लोक

श्लोक:
अध्याय 6, श्लोक 5
उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत्।
आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः॥६-५॥
हिंदी अनुवाद:
अपने आत्मा को उठाओ, अपने ही आत्मा को नीचा मत गिराओ। क्योंकि आत्मा स्वयं अपने लिए मित्र है और अपने लिए ही शत्रु भी है।
सरल व्याख्या:
यह श्लोक हमें बताता है कि हमारा मन और आत्मा ही हमारा सबसे बड़ा सहायक या विरोधी हो सकता है। व्यसन के समय यह समझना जरूरी है कि हम अपने ही मन के मित्र भी हैं और शत्रु भी। हमें अपने मन को उठाना है, कमजोर नहीं पड़ना।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. स्वयं की पहचान करो: व्यसन तुम्हारा स्वभाव नहीं, यह एक बाधा है। गीता सिखाती है कि हम अपने कर्मों से ऊपर हैं, आत्मा शुद्ध और अजर-अमर है।
  2. मन को नियंत्रित करो: व्यसन मन की अनियंत्रित इच्छा का परिणाम है। योग और ध्यान से मन को स्थिर कर, इच्छाओं पर विजय पाई जा सकती है।
  3. कर्म में लगो, फल की चिंता मत करो: व्यसन से लड़ने के लिए अपने कर्मों को समर्पित करो, परिणाम की चिंता किए बिना।
  4. सत्संग और गुरु का सहारा लो: गीता में कहा गया है कि सच्चे मार्गदर्शक और अच्छे संगत से मन मजबूत होता है।
  5. अहंकार का त्याग: व्यसन अक्सर अहंकार और असुरक्षा से जन्म लेता है। अहंकार छोड़कर आत्म-साक्षात्कार की ओर बढ़ो।

🌊 मन की हलचल

शिष्य, तुम्हारे मन में कई बार यह आवाज़ उठती होगी — "मैं कमजोर हूँ", "मैं इससे बाहर नहीं निकल पाऊंगा", या "मैंने बहुत प्रयास किया, पर असफल रहा"। यह स्वाभाविक है। परन्तु याद रखो, यह विचार तुम्हारे मन के व्यसन के जाल का हिस्सा हैं। इन्हें पहचानो, पर उनसे घबराओ नहीं। हर दिन एक नया अवसर है पुनः उठने का।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे प्रिय, तुम्हारे अंदर वही दिव्यता है जो मुझे भी है। जब भी तुम्हें लगे कि डूब रहे हो, मुझे याद करो। मैं तुम्हारे भीतर हूँ, तुम्हारे हृदय में। अपने मन को मेरे चरणों में समर्पित करो, और देखो कैसे व्यसन की जंजीरें टूटती हैं। विश्वास रखो, मैं तुम्हारे साथ हूँ।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक युवक था जो गहरे अंधकार में था, व्यसन की आग में जल रहा था। उसने अपने गुरु से पूछा, "गुरुजी, क्या मैं इससे बाहर निकल पाऊंगा?" गुरु ने उसे एक दीपक दिया और कहा, "इस दीपक को अपने भीतर जलाए रखो। अंधकार चाहे कितना भी घना हो, एक छोटी सी ज्योति उसे मिटा सकती है।" युवक ने हर दिन ध्यान और साधना की, धीरे-धीरे उसका मन शुद्ध हुआ और व्यसन से मुक्ति मिली। दीपक उसकी आत्मा की जागरूकता था।

✨ आज का एक कदम

आज के दिन अपने व्यसन की आदतों को पहचानो। एक छोटी सी डायरी बनाओ और उसमें लिखो कि कब, क्यों और कैसे तुम्हें उस आदत की इच्छा होती है। यह जागरूकता तुम्हारे मन की पहली जीत होगी।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने मन के उस हिस्से को पहचान पा रहा हूँ जो व्यसन को जन्म देता है?
  • क्या मैं स्वयं को मित्र बना सकता हूँ, शत्रु नहीं?

🌼 आशा के दीप से प्रकाशित जीवन
साधक, याद रखो, हर अँधेरा सूर्योदय की ओर बढ़ता है। व्यसन की जंजीरों को तोड़ने का साहस और शक्ति तुम्हारे भीतर ही है। गीता का प्रकाश तुम्हारे पथ को उज्ज्वल करेगा। तुम अकेले नहीं, मैं और कृष्ण सदैव तुम्हारे साथ हैं। चलो, आज से एक नई शुरुआत करें, जहाँ आत्मा की विजय हो।
शांति और प्रेम के साथ।

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