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गीता में अर्जुन के टूटने से मैं क्या सीख सकता हूँ?

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जब अर्जुन भी टूटा, तो तुम अकेले नहीं हो
साधक, जीवन के कठिन क्षणों में जब मन टूटता है, तब लगता है जैसे सब कुछ अधूरा और असहनीय हो गया हो। अर्जुन भी युद्धभूमि पर जब अपने कर्तव्य और भावनाओं के बीच उलझ गया, तब उसके मन की पीड़ा गहरी थी। उसकी इस कमजोरी से हमें यह सीख मिलती है कि टूटना भी मानवता का हिस्सा है, और उससे उठ खड़ा होना ही सच्ची शक्ति है।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 2, श्लोक 47
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

हिंदी अनुवाद:
तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए कर्म के फल की इच्छा मत करो और न ही कर्म न करने में आसक्ति रखो।
सरल व्याख्या:
अर्जुन को यह समझाया गया कि वह अपने कर्तव्य का पालन करे, फल की चिंता न करे। जीवन में हम कभी-कभी टूट जाते हैं, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि हम अपने रास्ते छोड़ दें। कर्म करना हमारा धर्म है, फल भगवान पर छोड़ देना चाहिए।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  • टूटना स्वाभाविक है: अर्जुन के टूटने से पता चलता है कि भावनात्मक संघर्ष हर इंसान के जीवन में आता है। इसे स्वीकार करें, इससे भागें नहीं।
  • कर्तव्य की ओर लौटना: असफलता या टूटने के बाद भी अपने कर्तव्य और उद्देश्य को याद रखें। यही आपकी असली ताकत है।
  • मन को स्थिर करना: गीता में बताया गया है कि मन को संयमित करना, भावनाओं पर नियंत्रण रखना जीवन की सबसे बड़ी कला है।
  • स्वयं पर विश्वास: भगवान कृष्ण ने अर्जुन को उसकी क्षमताओं पर भरोसा दिलाया। आपको भी अपने भीतर छिपी शक्ति पर विश्वास करना होगा।
  • फलों से मुक्त रहना: परिणाम की चिंता छोड़ कर केवल कर्म में लगे रहना मानसिक शांति देता है।

🌊 मन की हलचल

शायद तुम सोच रहे हो, “मैं भी अर्जुन की तरह कमजोर हूं, मेरी पीड़ा कौन समझेगा?” यह स्वाभाविक है। जब मन टूटता है, तो अंधकार घेर लेता है, पर याद रखो, यह अंधकार स्थायी नहीं। भीतर एक प्रकाश है जो तुम्हें फिर से उठने की शक्ति देगा। अपने मन के उस प्रकाश को खोजो, जो तुम्हें फिर से चलने का साहस देगा।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

“हे अर्जुन, मैं तुम्हारे साथ हूँ। तुम्हारे हर टूटने में मैं तुम्हें संभालने वाला हूँ। डरना मत, क्योंकि अंधकार के बाद प्रकाश अवश्य आता है। तुम्हारा कर्तव्य तुम्हें बुला रहा है, उठो और फिर से चलो। मैं तुम्हारे भीतर की शक्ति को पहचानता हूँ, तुम भी उसे पहचानो।”

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

कल्पना करो कि एक छात्र परीक्षा में असफल हो गया। वह टूट गया, निराश हो गया। लेकिन उसने हार नहीं मानी। उसने अपने गुरु की बात मानी, मेहनत की और अगली बार सफल हुआ। अर्जुन की तरह, वह भी टूट कर फिर से खड़ा हुआ। जीवन में हार और टूटना केवल सीखने का हिस्सा है, अंतिम मंजिल नहीं।

✨ आज का एक कदम

आज अपने मन के उस हिस्से से बात करो जो टूट गया है। उसे समझो, स्वीकार करो और फिर धीरे-धीरे उसे यह भरोसा दो कि सब ठीक होगा। एक छोटा ध्यान करो या गहरी सांस लेकर अपने भीतर की शांति को महसूस करो।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने टूटने को स्वीकार कर पा रहा हूँ?
  • क्या मैं अपने कर्म पर ध्यान केंद्रित कर सकता हूँ बिना फल की चिंता किए?

चलो, फिर से उठने की ओर बढ़ें
साधक, टूटना अंत नहीं, एक नया आरंभ है। अर्जुन की तरह तुम्हारे भीतर भी अपार शक्ति है। अपने मन को शांत करो, अपने कर्तव्य को पहचानो और विश्वास रखो कि हर अंधकार के बाद उजाला होता है। तुम अकेले नहीं हो, मैं तुम्हारे साथ हूँ।
शुभकामनाएँ। 🌸

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