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अंधकार को पार करने में निःस्वार्थ कर्म की क्या भूमिका होती है?

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  • अंधकार को पार करने में निःस्वार्थ कर्म की क्या भूमिका होती है?

अंधकार के बीच निःस्वार्थ कर्म की ज्योति: तुम अकेले नहीं हो
प्रिय मित्र, जब जीवन के अंधकार घने होते हैं, तब मन की गहराइयों में निराशा और उदासी की छाया फैल जाती है। ऐसे समय में तुम्हारा यह प्रश्न — "अंधकार को पार करने में निःस्वार्थ कर्म की क्या भूमिका होती है?" — अत्यंत महत्वपूर्ण और सार्थक है। समझो, तुम अकेले नहीं हो, यह प्रश्न हर उस आत्मा का है जो अपने भीतर के अंधेरे से लड़ रही है। आइए, हम भगवद गीता के प्रकाश में इस उलझन को सुलझाएं।

🕉️ शाश्वत श्लोक

श्लोक:
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन |
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि || (गीता २.४७)
हिंदी अनुवाद:
तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए कर्म के फल की इच्छा मत करो, और न ही कर्म न करने में आसक्त हो।
सरल व्याख्या:
यह श्लोक हमें सिखाता है कि कर्म करना हमारा धर्म है, लेकिन उसके फल की चिंता हमें नहीं करनी चाहिए। निःस्वार्थ कर्म, अर्थात बिना फल की इच्छा के कर्म, मन को स्थिर और शुद्ध बनाते हैं। जब हम अपने कर्मों को फल की चिंता से मुक्त कर देते हैं, तो अंधकार भी धीरे-धीरे दूर होने लगता है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. कर्म का बोझ कम होता है: जब हम निःस्वार्थ होकर कर्म करते हैं, तो मन में चिंता और तनाव कम होता है, जिससे अंधकार की छाया कम होती है।
  2. मन की शांति मिलती है: फल की आशा न रखने से मन शांत होता है और अवसाद से लड़ने की शक्ति मिलती है।
  3. स्वयं पर नियंत्रण बढ़ता है: निःस्वार्थ कर्म से अहंकार कम होता है, और मन की गहराई में छुपे प्रकाश का अनुभव होता है।
  4. जीवन में उद्देश्य स्पष्ट होता है: कर्म करते रहना जीवन का सार है, और यह उद्देश्य हमें अंधकार से बाहर निकालता है।
  5. आत्मिक विकास होता है: निःस्वार्थ कर्म से आत्मा की उन्नति होती है, जो अंततः अंधकार को पार कर प्रकाश में ले जाता है।

🌊 मन की हलचल

तुम्हारा मन कहता होगा — "मैंने कितनी बार कोशिश की, फिर भी अंधकार छूटता नहीं। क्या मेरा कर्म व्यर्थ है? क्या मैं अकेला हूँ इस संघर्ष में?" ये विचार स्वाभाविक हैं। पर याद रखो, अंधकार के बीच भी एक छोटी सी ज्योति होती है, जो निःस्वार्थ कर्म से बढ़ती है। तुम्हारा कर्म जैसे बूंद-बूंद से सागर बनता है, और वही सागर तुम्हें अंधकार से बाहर निकालता है।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे अर्जुन! जब मन अंधकार से घिरा हो, तब कर्म में डूब जाओ। फल की चिंता छोड़ दो। जैसे नदी बिना रुके समुद्र की ओर बढ़ती है, वैसे ही तुम भी अपने कर्मों को निरंतर करते रहो। मैं तुम्हारे साथ हूँ, तुम्हारे कर्मों का फल मैं देखता हूँ। इसलिए न डर, न थक, केवल कर्म करते रहो।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक दीपक की बात सोचो, जो एक कमरे के कोने में जल रहा है। वह दीपक अकेला, छोटा और कमजोर लगता है। लेकिन जब वह निःस्वार्थ रूप से जलता रहता है, तो धीरे-धीरे उसके प्रकाश से पूरा कमरा जगमगाने लगता है। अंधकार भागने लगता है। दीपक का प्रकाश कम नहीं होता, बस वह जलता रहता है। तुम्हारा निःस्वार्थ कर्म भी ऐसा दीपक है — छोटे-छोटे प्रयासों का प्रकाश जो अंततः अंधकार को दूर कर देता है।

✨ आज का एक कदम

आज, अपने किसी छोटे से कार्य को बिना किसी फल की इच्छा के करो। चाहे वह किसी की मदद हो, किसी को मुस्कुराना हो, या अपने लिए ध्यान का एक छोटा समय निकालना हो। इस कर्म को निःस्वार्थ भाव से करो और देखो मन में कैसे शांति आती है।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने कर्मों को फल की चिंता से मुक्त कर सकता हूँ?
  • क्या मैं अपने छोटे-छोटे प्रयासों को निरंतर जारी रख सकता हूँ, चाहे परिणाम कुछ भी हो?

🌼 अंधकार के बादल छंटेंगे — विश्वास की किरणें फिर चमकेंगी
साधक, याद रखो, अंधकार स्थायी नहीं है। निःस्वार्थ कर्म से तुम्हारे भीतर एक दिव्य प्रकाश जलता है, जो धीरे-धीरे सारे अंधकार को मिटा देगा। तुम अकेले नहीं हो, मैं और गीता तुम्हारे साथ हैं। बस कर्म करते रहो, बिना थके, बिना डरे। प्रकाश तुम्हारा इंतजार कर रहा है।
शुभकामनाएँ और प्रेम के साथ।

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