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जब जीवन प्रश्न करता है, गीता समाधान देती है

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भगवद गीता अवसाद के बारे में क्या कहती है?

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अंधकार से उजाले की ओर: जब मन डूबा हो अवसाद के सागर में
साधक, जब मन भारी हो, दिल उदास हो, और जीवन के रंग फीके लगने लगें, तो समझो कि यह भी एक यात्रा है — एक गहरा अनुभव जो हमें अपनी आत्मा की गहराइयों से मिलवाता है। तुम अकेले नहीं हो। भगवद गीता में भी ऐसे समय के लिए अमूल्य ज्ञान है, जो तुम्हारे मन के अंधकार को दूर कर सकता है।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 2, श्लोक 14
मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः।
आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत॥

हिंदी अनुवाद:
हे कांत, यह शरीर और मन जो सुख-दुख, गर्मी-ठंडक के स्पर्शों को अनुभव करते हैं, वे क्षणिक और अस्थायी हैं। इसलिए, हे भारतवर्ष के पुत्र, इन्हें सहन करो।
सरल व्याख्या:
जीवन में सुख-दुख आते-जाते रहते हैं। जो क्षणिक हैं, वे स्थायी नहीं। गीता हमें सिखाती है कि इन बदलावों को सहन करने की शक्ति हमें आत्मा के स्थिर स्वरूप से मिलती है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  • अवसाद भी एक गुजरता हुआ अनुभव है, स्थायी नहीं। इसे स्वीकार करो, पर इसमें डूबो मत।
  • स्वयं के भीतर छुपी स्थिर आत्मा से जुड़ो। तुम केवल तुम्हारे भावनाएँ नहीं हो।
  • कर्म पर ध्यान केंद्रित करो, फल की चिंता छोड़ दो। कर्म करते रहो, चाहे मन कैसा भी हो।
  • मन को नियंत्रित करना सीखो, अपने विचारों के गुलाम मत बनो। ध्यान और योग इसके साधन हैं।
  • सहिष्णुता और धैर्य से काम लो। जीवन के उतार-चढ़ाव में स्थिर रहना ही सच्ची शक्ति है।

🌊 मन की हलचल

तुम्हारा मन कहता होगा — "मैं थक चुका हूँ, कुछ भी ठीक नहीं हो रहा। मैं अकेला हूँ।" यह ठीक है, यह भावना भी तुम्हारा हिस्सा है। गीता कहती है कि ऐसे समय में भी अपने भीतर की आवाज़ सुनो, जो कहती है — "मैं स्थिर हूँ, मैं अनंत हूँ।" यह द्वंद्व जीवन का हिस्सा है, और तुम्हें इससे लड़ना नहीं, समझना है।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे प्रिय, मैं तुम्हारे साथ हूँ। जब मन डगमगाए, तब मुझमें विश्वास रखो। जीवन के अंधेरे में मैं तुम्हारे लिए दीपक की तरह हूँ। अपने कर्मों में लग जाओ, फल की चिंता मत करो। याद रखो, तुम केवल तुम्हारे दुख नहीं, तुम उससे परे हो।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

कल्पना करो एक छात्र परीक्षा की तैयारी कर रहा है। वह कई बार फेल होता है, निराश होता है, मन उदास हो जाता है। पर वह हार नहीं मानता। वह जानता है कि असफलता भी सीखने का हिस्सा है। धीरे-धीरे वह अपने मन को संभालता है, फिर से प्रयास करता है, और अंततः सफलता पाता है। अवसाद भी वैसा ही है — एक कठिन परीक्षा, जो हमें मजबूत बनाती है।

✨ आज का एक कदम

आज एक छोटा अभ्यास करो: जब भी मन उदास हो, गहरी सांस लो और दो बार कहो — "यह भी बीतेगा। मैं स्थिर हूँ।" इसे दोहराते रहो। यह तुम्हारे मन को स्थिर करने का पहला कदम होगा।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने भावनाओं को स्वीकार कर पा रहा हूँ बिना उनके गुलाम हुए?
  • इस क्षण में मैं अपने भीतर की स्थिरता को कैसे महसूस कर सकता हूँ?

उजाले की ओर पहला कदम
प्रिय, यह यात्रा कठिन जरूर है, लेकिन अकेली नहीं। गीता की अमृत वाणी तुम्हारे साथ है। अपने भीतर के प्रकाश को पहचानो, उस पर भरोसा रखो, और हर अंधेरे को पार कर चलो। तुममें वह शक्ति है जो हर अवसाद को परास्त कर सकती है।
शुभकामनाएँ, और याद रखो — तुम अकेले नहीं हो।

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