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आध्यात्मिक दृष्टिकोण से आवेगी निर्णयों से कैसे बचें?

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शांति की ओर एक कदम: आवेगी निर्णयों से बचने का आध्यात्मिक मार्ग
साधक,
जीवन में जब मन आवेगों से भर जाता है, तब निर्णय लेना कठिन हो जाता है। ऐसे समय में भीतर की आवाज़ दब जाती है और हम अनजाने में गलत राह पकड़ लेते हैं। तुम अकेले नहीं हो, हर कोई कभी न कभी इस उलझन से गुज़रता है। चलो, हम गीता के अमृत शब्दों से इस भ्रम को दूर करते हैं और स्थिरता की ओर बढ़ते हैं।

🕉️ शाश्वत श्लोक

धृतराष्ट्र उवाच:
धर्म्याद्धि युद्धाच्छ्रेयोऽन्यत्कुतः सुखं समाश्रितः |
विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम् || 2.38 ||
हिंदी अनुवाद:
धृतराष्ट्र बोले — धर्मयुक्त युद्ध से बड़ा और कोई सुख नहीं। आपने मुझे वह अविनाशी योग बताया है, जो विवस्वत (सूर्य) से भी प्राचीन है।
सरल व्याख्या:
यह श्लोक हमें याद दिलाता है कि सही और धर्मयुक्त निर्णय में ही सच्चा सुख और स्थिरता है। आवेगों में लिए गए फैसले क्षणिक होते हैं, लेकिन योग अर्थात संतुलित और जागरूक निर्णय अमर होते हैं।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  • स्वयं पर नियंत्रण: आवेग मन का परिणाम है, इसलिए मन को संयमित करना आवश्यक है। "योगः कर्मसु कौशलम्" (योग कर्मों में निपुणता है) – अपने कर्मों में दक्षता और समझ लाओ।
  • ध्यान और विवेक: निर्णय से पहले मन को शांत करो, विवेक से सोचो, ताकि निर्णय स्थायी और सही हो।
  • भावनाओं का निरीक्षण: आवेग में आए भावों को पहचानो, पर उनसे प्रभावित न हो। भाव मन के मेहमान हैं, जो आते-जाते रहते हैं।
  • कर्तव्य की भावना: निर्णय करते समय अपने कर्तव्य और धर्म को याद रखो, जो तुम्हारे जीवन का आधार है।
  • परिणाम की चिंता छोड़ो: परिणाम की चिंता छोड़कर कर्म करो, क्योंकि गीता में कहा गया है कि फल की चिंता न करो, कर्म करो।

🌊 मन की हलचल

"मैं इतना जल्दी क्यों निर्णय ले लेता हूँ? क्या मैं अपने गुस्से या डर को नियंत्रित कर पाता हूँ? क्या मैं सचमुच सोच-समझकर निर्णय ले रहा हूँ या सिर्फ पल की भावना में फंसा हूँ?" ये सवाल तुम्हारे मन में उठ रहे होंगे। यह ठीक है। अपने मन को दोष मत दो, बल्कि उसे समझो। हर आवेग के पीछे कोई कारण होता है, उसे जानना और स्वीकार करना पहला कदम है।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे प्रिय, जब भी तू अपने मन की गहराई में उतरेंगे, तो पाएगा कि आवेग केवल क्षणिक तूफान है। उसे अपने स्थिर चित्त के दीपक से बुझा दे। निर्णय लेने से पहले अपने भीतर के शांत स्वर को सुन। याद रख, मैं तेरा सारथी हूँ, तुझे सही मार्ग दिखाने के लिए सदैव उपस्थित हूँ। अपने मन को मत डगमगाने दे, क्योंकि सच्चा बल संयम में है।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक छात्र परीक्षा के दौरान अचानक तनाव में आ गया। उसने आवेग में आकर पेपर बदलने का फैसला कर लिया, जो बाद में उसका नुकसान साबित हुआ। लेकिन एक बार उसने गहरी सांस लेकर शांत मन से देखा, तो सही विषय पर ध्यान केंद्रित कर पाया और सफलता मिली। जीवन भी ऐसा ही है, आवेग में लिए गए निर्णय हमें अस्थिर करते हैं, जबकि संयम और धैर्य से लिए गए निर्णय स्थिरता और सफलता देते हैं।

✨ आज का एक कदम

जब भी अगला निर्णय लेना हो, तीन गहरी सांसें लें, अपने मन को शांत करें, और सोचें: "क्या यह निर्णय मेरे स्थायी हित में है या केवल क्षणिक आवेग का परिणाम?" इस अभ्यास को दो सप्ताह तक करें और अपने अनुभव नोट करें।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने आवेगों को समझने और नियंत्रित करने के लिए तैयार हूँ?
  • क्या मैं निर्णय लेने से पहले अपने भीतर की शांति खोज पाता हूँ?

चलो यहाँ से शुरू करें: स्थिरता की ओर पहला कदम
साधक, याद रखो, आवेगों से बचना कोई एक दिन का कार्य नहीं है, यह निरंतर अभ्यास और जागरूकता की प्रक्रिया है। गीता की शिक्षाएं तुम्हारे लिए एक प्रकाशस्तंभ हैं। जब भी मन डगमगाए, उस प्रकाश को याद करो। तुम अकेले नहीं हो, मैं तुम्हारे साथ हूँ। धीरे-धीरे, स्थिरता और स्पष्टता तुम्हारे साथी बनेंगे।
शुभकामनाएँ और सदा प्रसन्न रहो।
ॐ शांति: शांति: शांति:

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