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अहंकार को मन के अस्थायी कार्य के रूप में कैसे समझें?

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अहंकार की माया: मन की अस्थायी छाया से परे
साधक, जब अहंकार की उलझनों में फंसे हो, तो जान लो कि तुम अकेले नहीं हो। यह मन की एक ऐसी लहर है जो स्वयं को महासागर से अलग समझती है। परंतु, गीता हमें सिखाती है कि यह अहंकार केवल अस्थायी है, एक भ्रम है, जो हमारे सच्चे स्वरूप को छुपा देता है।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 13, श्लोक 2
"इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता |
एषा ब्राह्मी स्थिति: प्राहि तत्र पार्थ ममाः ||"

हिंदी अनुवाद:
हे पार्थ! जो ज्ञान इन्द्रियों और इन्द्रिय विषयों के बीच स्थित है, वही सच्चा ब्राह्मण है।
सरल व्याख्या:
यह श्लोक हमें बताता है कि जो ज्ञान इन्द्रियों और मन के विषयों के बीच स्थित होता है, वह सच्चा ज्ञान है। अहंकार और मन के खेल को समझना ही ज्ञान है। अहंकार एक इन्द्रिय विषय है, जो अस्थायी है और ज्ञान से परे नहीं टिकता।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. अहंकार मन का एक कार्य है, स्थायी नहीं। जैसे दिन के बाद रात आती है, वैसे ही मन के कार्य भी आते-जाते रहते हैं।
  2. स्वयं को अहंकार से अलग पहचानो। तुम वह नहीं जो सोचता है कि "मैं हूँ", बल्कि वह जो देखता है कि "यह विचार आया और गया"।
  3. ज्ञान ही अहंकार का विनाशक है। जब मन की अस्थायी छाया को समझो, तब अहंकार की माया टूटती है।
  4. सतत ध्यान और आत्मनिरीक्षण से मन के खेल को पहचानो। अहंकार के पीछे छुपा डर और असुरक्षा समझो।
  5. स्वयं की पहचान केवल अहंकार के आधार पर न करो। तुम आत्मा हो, जो नित्य, शुद्ध और अविनाशी है।

🌊 मन की हलचल

"मैं कौन हूँ? क्या मैं वही हूँ जो सोचता है? क्या मेरा अहंकार मेरा असली रूप है या एक भ्रम? जब मैं अपने मन को देखता हूँ, वह मुझे भ्रमित करता है। मैं अपने मन की इस अस्थायी छाया से कैसे ऊपर उठूँ?"
यह सवाल तुम्हारे भीतर की गहराई को छू रहे हैं। यह संघर्ष तुम्हारे जागरण की पहली सीढ़ी है। अहंकार की अस्थिरता को समझना ही तुम्हारी मुक्ति की कुंजी है।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे प्रिय, तुम स्वयं को उस छाया से मत जोड़ो जो मन की लहरें बनाकर उभरती है। मैं तुम्हारे भीतर उस शाश्वत प्रकाश का स्वरूप हूँ, जो न कभी जन्मा, न कभी मरेगा। अहंकार केवल मन का नाटक है, उसे पहचानो और उससे ऊपर उठो। जब तुम स्वयं को जानोगे, तब यह भ्रम स्वयं ही मिट जाएगा।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक छात्र ने अपने कमरे की दीवार पर एक छाया देखी, और वह डर गया कि कोई भूत है। पर जब उसने दीपक जलाया, तो वह छाया केवल अपने आप से बनी हुई थी। उसी तरह, अहंकार भी मन की छाया है, जो प्रकाश (ज्ञान) के सामने फीकी पड़ जाती है।

✨ आज का एक कदम

आज अपने मन के विचारों को एक दूर से देखने वाले की तरह देखो। जब भी अहंकार की आवाज़ आए, उसे पहचानो — "यह मेरा मन है, मेरा अहंकार है, पर मैं उससे अलग हूँ।" इसे लिखो या ध्यान में दोहराओ।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने अहंकार को अपने असली स्वरूप से अलग समझ पाता हूँ?
  • क्या मैं अपने मन की अस्थायी छाया को पहचानने के लिए तैयार हूँ?

🌼 अहंकार से परे: शांति की ओर पहला कदम
तुम्हारा अहंकार तुम्हारा शत्रु नहीं, बल्कि तुम्हारा एक शिक्षक है, जो तुम्हें स्वयं की खोज में ले जाता है। उसे पहचानो, समझो और फिर उसे छोड़ दो। यही आत्मा की ओर एक सच्चा कदम होगा।
शुभ हो तुम्हारा आत्म-ज्ञान का यह सफर!
तुम अकेले नहीं हो, मैं तुम्हारे साथ हूँ।

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