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गिता में पहचान की भूमिकाओं से असंगति के बारे में क्या कहा गया है?

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  • गिता में पहचान की भूमिकाओं से असंगति के बारे में क्या कहा गया है?

पहचान की भूल से मुक्त होने का संदेश: तुम वह नहीं जो दिखता है
साधक,
जब हम अपने आप को केवल बाहरी भूमिकाओं, समाज की अपेक्षाओं या अपने अहंकार की सीमाओं में बाँध लेते हैं, तब असली आत्मा की आवाज़ दब जाती है। यह भ्रम हमें भीतर से बेचैन करता है। लेकिन भगवद गीता हमें सिखाती है कि हमारी असली पहचान शरीर, मन या भूमिका से परे है। आइए, इस गूढ़ सत्य को समझें और उस भ्रम से मुक्त हों।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 2, श्लोक 47
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

हिंदी अनुवाद:
तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए कर्म के फल की इच्छा मत करो और न ही कर्म न करने में आसक्ति रखो।
सरल व्याख्या:
यह श्लोक हमें सिखाता है कि हम अपने कर्मों से जुड़े हैं, न कि उनके परिणामों से। जब हम अपनी पहचान केवल कर्मों या उनके फलों से जोड़ लेते हैं, तब हम भ्रमित हो जाते हैं। असली "मैं" कर्मों से परे है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. असली पहचान आत्मा है, जो नित्य और अविनाशी है।
    शरीर, मन, या भूमिका क्षणिक हैं, पर आत्मा शाश्वत।
  2. भूमिकाएँ कर्म करने के लिए हैं, हम वही नहीं।
    जैसे अभिनेता अपने पात्र होते हैं, पर वह स्वयं नहीं होता।
  3. अहंकार की जंजीरों से मुक्त होकर आत्म-ज्ञान की ओर बढ़ो।
    पहचान की सीमाओं से ऊपर उठो।
  4. कर्म करो, पर फल की चिंता छोड़ दो।
    इससे मन की उलझन दूर होती है।
  5. साक्षी भाव अपनाओ — अपने भीतर के स्थिर और शांत स्वर को पहचानो।

🌊 मन की हलचल

"मैं कौन हूँ? क्या मैं वही हूँ जो लोग मुझे कहते हैं?
क्या मेरी पहचान मेरे पद, मेरे विचार, मेरे व्यवहार से तय होती है?
अगर सब कुछ छिन जाए तो मैं बचता क्या हूँ?"
ऐसे सवाल मन में उठते हैं। यह भ्रम है कि हम वही हैं जो हमारे बाहरी रूप या भूमिकाएँ हैं। परंतु गीता कहती है, तुम उससे कहीं अधिक हो।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे अर्जुन, जो शरीर है वह नित्य नहीं, पर तुम्हारा आत्मा अमर है।
तुम्हारी पहचान उस आत्मा में है, जो न जन्मा है, न मरेगा।
तुम्हें अपने कर्मों से जुड़ना है, न कि अपने अहंकार से।
जब तुम अपने भीतर की सच्चाई देखोगे, तब पहचान की सीमाएँ टूट जाएंगी।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक कलाकार ने अपनी नई भूमिका के लिए पूरी तैयारी की। वह पूरी तरह से उस पात्र में डूब गया, उसकी सोच, उसकी भाषा, उसका स्वभाव अपनाया। लेकिन जब पर्दा गिरा, तो वह खुद को खोया हुआ महसूस करने लगा। तभी उसके गुरु ने कहा, "तुम वह भूमिका नहीं हो, वह केवल एक भूमिका है। तुम्हारा असली स्वरूप तुमसे परे है।"
ठीक वैसे ही, हम अपने जीवन की भूमिकाओं में खो जाते हैं, पर असली "मैं" तो उससे कहीं परे है।

✨ आज का एक कदम

आज अपने आप से पूछो: "मैं अपने कौन से बाहरी रूपों से जुड़ा हुआ हूँ? क्या वे मेरी असली पहचान हैं?"
थोड़ा समय स्वयं के भीतर बिताओ, अपने भीतर के स्थिर और शांत स्वर को सुनो।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने अहंकार की सीमाओं से ऊपर उठ सकता हूँ?
  • क्या मैं अपनी असली आत्मा को पहचानने के लिए तैयार हूँ?

पहचान की जंजीरों से आज़ादी की ओर
शिष्य, तुम्हारी असली पहचान तुम्हारे शरीर, मन, या भूमिकाओं से कहीं अधिक गहरी और अमर है। जब तुम इसे समझोगे, तब तुम्हें शांति और स्वतंत्रता का अनुभव होगा। याद रखो, तुम वह नहीं जो दिखता है, तुम वह हो जो भीतर से प्रकाशमान है। इस सच्चाई को अपनाओ और जीवन की असली यात्रा शुरू करो।
शुभकामनाएँ। 🙏🌺

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