Skip to header Skip to main navigation Skip to main content Skip to footer
Hindi
Gita Answers
Gita Answers
जब जीवन प्रश्न करता है, गीता समाधान देती है

मुख्य नेविगेशन

  • मुख्य पृष्ठ

अपना संदेह पूछें… गीता राह दिखाएगी

गीता में "मैं" और "मेरा" का भ्रम क्या है?

पग चिन्ह

  • मुख्य पृष्ठ
  • गीता में "मैं" और "मेरा" का भ्रम क्या है?

"तुम अकेले नहीं हो — 'मैं' और 'मेरा' के भ्रम की कहानी"
प्रिय शिष्य,
जब हम अपने अंदर गहराई से झांकते हैं, तो अक्सर एक आवाज़ सुनाई देती है — "मैं हूँ," "यह मेरा है," "मेरा अधिकार है।" यह आवाज़ हमें अपनी पहचान देती है, लेकिन क्या यह सचमुच हमारा असली स्वरूप है? या फिर यह केवल एक भ्रम है, जो हमें सीमित करता है? आज हम भगवद गीता के प्रकाश में इस भ्रम को समझने का प्रयास करेंगे।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 2, श्लोक 16
नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः।
उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्त्वदर्शिभिः॥

हिंदी अनुवाद:
जो न है, उसका कोई अस्तित्व नहीं; जो है, उसका कोई नाश नहीं। जो दोनों को जानते हैं, वे सच्चे ज्ञानी हैं।
सरल व्याख्या:
यह श्लोक हमें बताता है कि जो असली है (आत्मा), वह नष्ट नहीं हो सकता, और जो नश्वर है (शरीर, मन, अहंकार), उसका स्थायी अस्तित्व नहीं है। "मैं" और "मेरा" का जो भ्रम है, वह अस्थायी और नश्वर है, जबकि हमारा सच्चा स्वरूप नश्वरता से परे है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. अहंकार का स्वभाव समझो: "मैं" और "मेरा" अहंकार की उपज है, जो शरीर, मन और बुद्धि से जुड़ी है, न कि आत्मा से।
  2. सत्य आत्मा को पहचानो: आत्मा न तो जन्मती है, न मरती है; वह नश्वरता से परे है।
  3. वस्तुओं और संबंधों से अलग हो: "मेरा" केवल एक धारणा है, जो हमें वस्तुओं या संबंधों से जोड़ती है, लेकिन वे अस्थायी हैं।
  4. अधिकार और कर्म की समझ: कर्म करो, पर फल की आसक्ति छोड़ दो; "मेरा" फल तुम्हारा नहीं, यह प्रकृति का नियम है।
  5. अहंकार का त्याग ही मुक्ति है: जब "मैं" और "मेरा" का भ्रम टूटता है, तब हम सच्चे आनंद और शांति को पाते हैं।

🌊 मन की हलचल

"मैं कौन हूँ? क्या मैं वही हूँ जो मेरे विचार कहते हैं? या वही जो मेरा शरीर है? जब मेरा कोई प्रिय व्यक्ति या वस्तु छिन जाती है, तो मेरा अस्तित्व भी खो जाता है क्या? क्या मेरा 'मैं' स्थिर है या बदलता रहता है? यह भ्रम क्यों मुझे दुख देता है?"
ऐसे सवालों से घबराओ मत। यह तुम्हारा मन है जो अपनी सीमाओं को पहचानने की कोशिश कर रहा है। यह भ्रम तुम्हारे अनुभवों की एक परत है, जिसे समझकर तुम सच्चाई की ओर बढ़ सकते हो।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे अर्जुन, यह जो 'मैं' और 'मेरा' की माया तुम्हें भ्रमित करती है, वह केवल तुम्हारे मन की उपज है। तुम आत्मा हो, जो न तो जन्मता है, न मरता है। जब तुम इस सत्य को जान लोगे, तब तुम्हारा अहंकार टूट जाएगा। तब तुम संसार के सुख-दुख से परे, शांति और आनंद के सागर में तैरोगे। अपने कर्म करो, पर फल की आसक्ति छोड़ दो। यही मेरा उपदेश है।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

कल्पना करो कि तुम एक नदी के किनारे खड़े हो। नदी का पानी निरंतर बहता रहता है — कभी ठंडा, कभी गर्म, कभी साफ, कभी गंदा। क्या नदी का पानी स्थिर है? नहीं। लेकिन नदी का अस्तित्व बना रहता है। इसी तरह हमारा शरीर, मन, और "मैं" का विचार भी निरंतर बदलता रहता है। परन्तु उस नदी के तट की तरह, आत्मा स्थिर और शाश्वत है। जब हम यह समझ लेते हैं, तो "मैं" और "मेरा" का भ्रम टूट जाता है।

✨ आज का एक कदम

आज अपने दिन में एक पल निकालकर यह सोचो — "क्या यह जो मैं कहता/कहती हूँ 'मेरा' है, वह वास्तव में मेरा है? क्या मेरा शरीर, मेरा मन, मेरे विचार मेरे सच्चे स्वरूप को परिभाषित करते हैं?" इस सवाल को अपने भीतर दोहराओ और देखो कि मन क्या प्रतिक्रिया देता है।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मेरा 'मैं' स्थिर है या बदलता रहता है?
  • मैं किन चीज़ों को अपना 'मेरा' समझता हूँ, और क्या वे अस्थायी हैं?
  • क्या मैं अपने सच्चे स्वरूप को जानने के लिए तैयार हूँ?

"शांति की ओर एक कदम"
प्रिय शिष्य,
"मैं" और "मेरा" के भ्रम से मुक्त होना आसान नहीं, पर यह संभव है। जैसे अंधकार में एक दीपक जलाना, वैसे ही ज्ञान का प्रकाश इस भ्रम को दूर कर सकता है। धैर्य रखो, अपने भीतर की सच्चाई को पहचानो। याद रखो, तुम अकेले नहीं हो इस यात्रा में। हर कदम पर मैं तुम्हारे साथ हूँ।
शुभकामनाएँ,
तुम्हारा गुरु

Footer menu

  • संपर्क

Copyright © 2025 Gita Answers - All rights reserved

Gita Answers Gita Answers