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गीता का व्यक्तित्व की अस्थिरता पर क्या शिक्षण है?

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अपने भीतर की अनिश्चितता से दोस्ती करें
साधक, जब मन की दुनिया अस्थिर हो, जब पहचान और व्यक्तित्व की छाया हमें डगमगाए, तब यह समझना बहुत जरूरी है कि यह अस्थिरता तुम्हारे अस्तित्व का हिस्सा है, न कि अंत। तुम अकेले नहीं हो; हर व्यक्ति के मन में यह लहरें उठती हैं। भगवद गीता हमें इस भ्रम से उबरने और स्थिरता की ओर बढ़ने का मार्ग दिखाती है।

🕉️ शाश्वत श्लोक

मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु।
मामेवैष्यसि सत्यं ते प्रतिजाने प्रियोऽसि मे॥

(अध्याय 9, श्लोक 34)
"मेरा मन लगाकर, मुझमें श्रद्धा रखकर, मुझे पूजो, और मुझको प्रणाम करो। निश्चय ही तुम मेरी ओर आओगे। मैं तुम्हारे लिए सच्चा मित्र हूँ।"

सरल व्याख्या:
यह श्लोक हमें याद दिलाता है कि अस्थिर मन की गहराई में स्थायी और सच्चा मित्र है — वह परमात्मा, जो तुम्हारे भीतर है। जब तुम अपने अस्थिर व्यक्तित्व को छोड़कर उस स्थिर आत्मा से जुड़ते हो, तभी तुम्हें शांति और स्थिरता मिलती है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. असतत् मन को समझो, स्थिर आत्मा को पहचानो: गीता कहती है कि मन अस्थिर है, लेकिन आत्मा नित्य और शाश्वत है। (अध्याय 2, श्लोक 14)
  2. अहंकार का बंधन तोड़ो: व्यक्तित्व की अस्थिरता का मूल कारण अहंकार और असली पहचान के भ्रम में फंसना है। (अध्याय 3, श्लोक 27)
  3. कर्म करो, फल की चिंता छोड़ो: अपने कर्मों में लगो, पर उनके परिणाम से स्वयं को न जोड़ो। यह मन की लहरों को शांत करता है। (अध्याय 2, श्लोक 47)
  4. समत्व भाव विकसित करो: सुख-दुख, जीत-हार में समान दृष्टि रखो। इससे मन की अस्थिरता कम होती है। (अध्याय 2, श्लोक 48)
  5. ध्यान और आत्म-निरीक्षण अपनाओ: नियमित ध्यान से मन की गड़बड़ी कम होती है और आत्म-ज्ञान बढ़ता है। (अध्याय 6, श्लोक 6)

🌊 मन की हलचल

तुम महसूस करते हो कि तुम्हारा व्यक्तित्व बार-बार बदलता है, कभी खुश, कभी उदास, कभी आश्वस्त, कभी डरता हुआ। यह अस्थिरता तुम्हें थका देती है, तुम्हें भ्रमित करती है कि "मैं कौन हूँ?"। यह प्रश्न स्वाभाविक है, और यही तुम्हें गहरे आत्म-ज्ञान की ओर ले जाता है। याद रखो, यह यात्रा तुम्हारे मन की हलचल से शुरू होती है, और आत्मा की स्थिरता तक जाती है।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे साधक, तुम अपनी अस्थिरता को अपने अस्तित्व की कमजोरी न समझो। मैं तुम्हें यह सिखाता हूँ कि तुम्हारा सच्चा स्वरूप न तो कभी बदलता है, न ही डगमगाता है। तुम्हारी अस्थिरता मन की है, आत्मा की नहीं। जब तुम मुझमें समर्पित हो जाओगे, तब तुम्हारा व्यक्तित्व स्थिर और निर्मल हो जाएगा। मैं तुम्हारे भीतर की उस शाश्वत ज्योति को प्रज्वलित करता हूँ।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक नदी के किनारे एक नौजवान बैठा था। नदी का पानी लगातार बहता रहता था, कभी शांत, कभी उफनता। वह सोचता रहा, "क्या मैं भी नदी की तरह बदलता रहूँगा? क्या मेरी पहचान भी इतनी अस्थिर है?" तभी एक वृद्ध आए और बोले, "देखो, नदी का पानी बदलता है, पर नदी का अस्तित्व स्थिर रहता है। तुम मन के पानी हो, और आत्मा नदी। पानी चाहे जैसा भी हो, नदी वही रहती है।"

✨ आज का एक कदम

आज अपने मन की एक अस्थिर भावना को पहचानो, उसे स्वीकार करो, और फिर उसे अपने भीतर की स्थिर आत्मा के साथ जोड़ने की कोशिश करो। ध्यान में बैठकर खुद से पूछो, "क्या यह भावना मेरी सच्ची पहचान है, या केवल मन की एक लहर?"

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने अस्थिर व्यक्तित्व को अपने सच्चे स्वरूप से अलग समझ पाता हूँ?
  • क्या मैं अपने मन की लहरों के बीच भी स्थिर रहने की कोशिश कर सकता हूँ?

स्थिरता की ओर पहला कदम
प्रिय, अस्थिरता तुम्हारा शत्रु नहीं, तुम्हारा शिक्षक है। उसे समझो, स्वीकारो और उससे ऊपर उठो। तुम्हारे भीतर की स्थिर आत्मा तुम्हें हर परिस्थिति में सहारा देगी। मैं तुम्हारे साथ हूँ, तुम्हारा मार्गदर्शक हूँ। चलो, इस यात्रा को साथ मिलकर आगे बढ़ाएं।
शुभकामनाएँ और प्रेम सहित। 🌸🙏

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