Skip to header Skip to main navigation Skip to main content Skip to footer
Hindi
Gita Answers
Gita Answers
जब जीवन प्रश्न करता है, गीता समाधान देती है

मुख्य नेविगेशन

  • मुख्य पृष्ठ

अपना संदेह पूछें… गीता राह दिखाएगी

स्व-प्राप्ति वास्तव में कैसी महसूस होती है?

पग चिन्ह

  • मुख्य पृष्ठ
  • स्व-प्राप्ति वास्तव में कैसी महसूस होती है?

आत्म-प्राप्ति: वह मधुर अनुभूति जो भीतर से जगाती है
साधक, तुम्हारा यह प्रश्न स्व-प्राप्ति की गहराई में उतरने की तीव्र आकांक्षा को दर्शाता है। यह यात्रा कभी सरल नहीं होती, क्योंकि यह तुम्हें तुम्हारे भीतर के भ्रम, अहंकार और सीमाओं से परे ले जाती है। परन्तु जान लो, तुम अकेले नहीं हो। हर महान योगी और ज्ञानी ने इस अनुभूति को खोजा है, और वह अनुभव अनंत शांति, पूर्णता और प्रेम से भरपूर होता है।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 2, श्लोक 50
"बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते।
तस्माद्योगाय युज्यस्व योगः कर्मसु कौशलम्॥"

हिंदी अनुवाद:
बुद्धि से युक्त व्यक्ति इस जन्म में ही अच्छे और बुरे कर्मों दोनों के बंधन से मुक्त हो जाता है। इसलिए, तू योग में लग जा, क्योंकि योग कर्मों में कुशलता है।
सरल व्याख्या:
जब मन और बुद्धि योग की स्थिति में आ जाती है, तब वह व्यक्ति कर्मों के अच्छे-बुरे फल की चिंता से ऊपर उठ जाता है। स्व-प्राप्ति का अनुभव उस स्थिति में होता है जहाँ मन शांत, बुद्धि स्पष्ट और अहंकार लुप्त हो जाता है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. स्वयं को कर्म के फल से अलग समझो: स्व-प्राप्ति का अर्थ है कर्म करते हुए भी फल की आसक्ति छोड़ देना।
  2. अहंकार का त्याग: अहंकार ही हमें "मैं" और "मेरा" की सीमाओं में बाँधता है। उसे छोड़ो, तब असली स्व-प्राप्ति होती है।
  3. सर्वत्र समत्व: सुख-दुख, जीत-हार, सफलता-असफलता में समभाव रखो। यही योग है।
  4. अंतर्मुखी ध्यान: बाहर की दुनिया की चकाचौंध से हटकर अपने भीतर झाँको। वहाँ तुम्हारा सच्चा स्वरूप छिपा है।
  5. शांत और स्थिर मन: स्व-प्राप्ति का अनुभव तब होता है जब मन पूरी तरह स्थिर और शांत हो जाता है।

🌊 मन की हलचल

तुम्हारा मन कहता होगा — "मैं कौन हूँ? क्या मैं वही हूँ जो मेरा शरीर, मेरा नाम, मेरा काम है?"
या शायद सवाल उठता होगा — "स्व-प्राप्ति इतनी दूर क्यों लगती है? क्या मैं कभी उसे महसूस कर पाऊंगा?"
यह उलझन और बेचैनी स्वाभाविक है। हर खोजी को यह दौर पार करना पड़ता है। धैर्य रखो, क्योंकि यह सफर तुम्हें तुम्हारे असली घर तक ले जाएगा।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे प्रिय, अपने भीतर झाँको। वह जो तुम्हें देख रहा है, सोच रहा है, महसूस कर रहा है — वही तुम्हारा सच्चा स्वरूप है। उसे पहचानो, और जान लो कि तुम कभी अलग नहीं थे। स्व-प्राप्ति कोई दूर की मंजिल नहीं, बल्कि तुम्हारे भीतर की शाश्वत चेतना का अनुभव है। अहंकार के आवरण को हटाओ, और उस शांति को अपनाओ जो अनंत है।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

कल्पना करो कि एक छात्र अपनी परीक्षा के लिए दिन-रात मेहनत कर रहा है। वह तनाव में है, डर रहा है कि क्या वह सफल होगा या नहीं। परीक्षा के दिन, जैसे ही वह प्रश्नपत्र देखता है, वह शांत हो जाता है और अपने आप पर भरोसा करता है। उसी क्षण उसे एक अजीब सी शांति और आत्मविश्वास महसूस होता है — यह स्व-प्राप्ति का अनुभव है। यह स्थिति उसके अंदर की उस गहरी चेतना से जुड़ने का परिणाम है, जो परीक्षा के परिणाम से परे है।

✨ आज का एक कदम

आज के दिन, कम से कम दस मिनट अपने मन को शांत करके केवल अपने श्वास पर ध्यान दो। जब भी मन भटकता है, उसे प्यार से वापस श्वास की ओर ले आओ। यह साधना तुम्हें अपने भीतर की स्थिरता से जोड़ने लगेगी।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने अंदर की शांति को महसूस कर पा रहा हूँ, या मैं केवल बाहरी परिस्थितियों से प्रभावित हूँ?
  • क्या मैं अपने अहंकार को पहचानकर उसे छोड़ने को तैयार हूँ?

🌼 आत्म-प्राप्ति का मधुर स्पर्श तुम्हारे भीतर है
याद रखो, स्व-प्राप्ति कोई दूर की मंजिल नहीं, बल्कि तुम्हारे भीतर की गहराई है। जैसे सूरज की किरणें बादलों को चीरकर धरती को रोशन करती हैं, वैसे ही तुम्हारा आत्म-ज्ञान भी तुम्हारे भ्रमों को मिटाकर तुम्हें उजाले की ओर ले जाएगा। धैर्य रखो और कदम बढ़ाते रहो। मैं तुम्हारे साथ हूँ।
शुभकामनाएँ! 🌸

Footer menu

  • संपर्क

Copyright © 2025 Gita Answers - All rights reserved

Gita Answers Gita Answers