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कृष्ण क्यों कहते हैं “तुम यह शरीर नहीं हो”?

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  • कृष्ण क्यों कहते हैं “तुम यह शरीर नहीं हो”?

तुम केवल यह शरीर नहीं हो — आत्मा की पहचान की ओर पहला कदम
साधक, जब हम अपने आपको केवल शरीर, मन या भावनाओं तक सीमित समझते हैं, तब भीतर एक अनजानी बेचैनी और अस्थिरता बनी रहती है। भगवान श्रीकृष्ण का यह वचन — “तुम यह शरीर नहीं हो” — हमें उस मूल सत्य की ओर ले जाता है, जो हमारे अस्तित्व की असली पहचान है। यह एक प्रेमपूर्ण निमंत्रण है अपने भीतर की सच्चाई से मिलने का।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अथ त्वं पुरुषोऽकथितोऽसि प्रकृतिं पुरुषं च सदा।
एतयोः संयुगे रजोऽस्मि सत्त्वं त्वमिति मे मतिः ॥

(भगवद् गीता १३.५)
अनुवाद:
“हे अर्जुन! तुम शरीर (प्रकृति) और आत्मा (पुरुष) के संबंध को नहीं समझ पाते। मैं इस संयोजन में रजोगुण (संयोजक तत्व) हूँ, और तुम सत्त्वगुण (शुद्ध चेतना) हो — ऐसा मेरा मत है।”
सरल व्याख्या:
यह श्लोक हमें बताता है कि शरीर और आत्मा दो अलग-अलग तत्व हैं। शरीर प्रकृति का हिस्सा है, जो जन्म और मृत्यु के चक्र में आता-जाता रहता है। आत्मा शाश्वत, नित्य और शुद्ध चेतना है, जो शरीर से अलग और उससे स्वतंत्र है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. आत्मा शाश्वत है: शरीर जन्म लेता है, बढ़ता है और मरता है, लेकिन आत्मा कभी जन्म नहीं लेती, न मरती है। वह नित्य और अविनाशी है।
  2. असली पहचान आत्मा है: हम जो सचमुच हैं, वह हमारा शरीर या मन नहीं, बल्कि वह चेतना है जो उन्हें अनुभव करती है।
  3. अहंकार का परित्याग: “मैं यह शरीर हूँ” की धारणा अहंकार की जड़ है, जो दुःख और भ्रम का कारण बनती है।
  4. मुक्ति की राह: जब हम अपने को शरीर से अलग आत्मा के रूप में पहचानते हैं, तब हम संसार के दुःखों से ऊपर उठ सकते हैं।
  5. शांति का स्रोत: आत्मा की अनुभूति से मन को स्थिरता और शांति मिलती है, जो शरीर की अस्थिरता से स्वतंत्र होती है।

🌊 मन की हलचल

तुम सोच रहे हो — “मैं तो यह शरीर हूँ, ये मेरी पहचान है। बिना इसके मैं कौन हूँ?” यह स्वाभाविक प्रश्न है। लेकिन याद रखो, शरीर तो वस्त्र की तरह है, जो बदलता रहता है। जब तुम अपने वस्त्र को पहचानते हो, तो क्या तुम वही वस्त्र हो? नहीं। इसी तरह, तुम्हारा असली अस्तित्व उस चेतना में है जो इन सभी वस्त्रों को धारण करती है।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

“प्रिय अर्जुन, तुम मेरा स्वरूप नहीं हो, तुम उस आत्मा हो जो मेरा अंश है। इस शरीर को छोड़कर भी तुम हमेशा मेरे साथ हो। जब तुम समझ जाओगे कि तुम केवल शरीर नहीं, अपितु अनन्त चेतना हो, तब तुम्हें सच्ची स्वतंत्रता और आनंद का अनुभव होगा।”

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक छात्र अपने स्कूल बैग को लेकर बहुत चिंतित था क्योंकि वह सोचता था कि वह वही है जो उसका बैग है। एक दिन उसके गुरु ने कहा, “बच्चे, क्या तुम अपने बैग को बदल सकते हो?” उसने कहा, “हाँ।” गुरु ने मुस्कुराते हुए कहा, “तो तुम बैग नहीं हो, तुम उस व्यक्ति हो जो बैग को रखता है। बैग तो बस एक वस्तु है, जो बदलती रहती है।”
ठीक इसी तरह, यह शरीर तुम्हारा ‘बैग’ है, और तुम वह आत्मा हो जो इसे धारण करता है।

✨ आज का एक कदम

आज एक पल के लिए अपने शरीर से अलग बैठो। अपनी सांसों पर ध्यान दो और महसूस करो कि जो देख रहा है, सुन रहा है, महसूस कर रहा है, वह शरीर से परे है। इसे रोज़ाना ५ मिनट दो, और धीरे-धीरे अपने भीतर की उस शाश्वत चेतना से जुड़ो।

🧘 अंदर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने आपको केवल शरीर और मन समझकर सीमित कर रहा हूँ?
  • मैं उस चेतना को कैसे पहचान सकता हूँ जो इन सब से परे है?

आत्मा की खोज — तुम्हारा सच्चा घर
याद रखो, तुम केवल यह शरीर नहीं हो। तुम उस नित्य, अविनाशी आत्मा के स्वरूप हो, जो इस शरीर में अनुभव कर रही है। जब यह समझ आएगी, तब जीवन के सारे भ्रम और दुख अपने आप दूर हो जाएंगे। यह यात्रा कठिन लग सकती है, पर मैं तुम्हारे साथ हूँ। चलो, इस सच्चाई की ओर बढ़ें, जहां तुम्हें शांति, आनंद और स्वाधीनता मिलती है।
शुभकामनाएँ, मेरे साधक।

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