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गर्व या आक्रामकता के बिना सत्य कैसे बोलें?

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सच की आवाज़ : गर्व से परे, शांति के साथ
साधक, तुमने जो प्रश्न उठाया है — गर्व या आक्रामकता के बिना सत्य बोलने का — वह जीवन का एक बहुत ही सूक्ष्म और महत्वपूर्ण विषय है। सच बोलना सरल नहीं होता, खासकर जब हमारे भीतर अहंकार या क्रोध की लहरें उठती हों। लेकिन याद रखो, तुम अकेले नहीं हो; हर मनुष्य इस संघर्ष से गुजरता है। आज हम भगवद् गीता के प्रकाश में इस राह को समझेंगे, ताकि सत्य की जड़ें प्रेम और विनम्रता से मजबूत हों।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 17, श्लोक 15
"सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयान्न ब्रूयाद् अप्रियं च यत्।
मृत्युप्राप्तं मृतकृत्‍वाऽपि नान्यथा विद्यते।।"

हिंदी अनुवाद:
जो सत्य हो, वह प्रिय हो, वही बोलो; जो अप्रिय हो, वह न बोलो। मृत्यु प्राप्त होने के बाद भी ऐसा ही बोलना चाहिए, अन्यथा नहीं।
सरल व्याख्या:
सत्य बोलना आवश्यक है, लेकिन वह ऐसा हो जो सुनने वाले के लिए भी प्रिय हो। सच को इस तरह प्रस्तुत करो कि वह दूसरों के मन को चोट न पहुँचाए। यहां तक कि मृत्यु के बाद भी हमें इस नीति का पालन करना चाहिए।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. सत्य में प्रेम जोड़ो: सत्य का अर्थ केवल कठोर तथ्य नहीं, बल्कि वह भावना भी है जो दूसरों के प्रति करुणा और सम्मान दिखाए।
  2. अहंकार से मुक्त रहो: जब अहंकार न हो, तब सत्य बोलना सहज और विनम्र होता है।
  3. क्रोध पर नियंत्रण: आक्रामकता से बचो; क्रोध सत्य को विकृत कर देता है।
  4. धैर्य और संयम अपनाओ: शब्दों को सोच-समझकर चुनो, ताकि वे रक्षात्मक न हों।
  5. स्वयं का निरीक्षण करो: पहले अपने मन को शांत करो, तभी सत्य का प्रकाश दूसरों तक पहुंचेगा।

🌊 मन की हलचल

तुम्हारे मन में यह सवाल उठ रहा होगा — "अगर मैं सच कहूँ और सामने वाला आहत हो जाए तो?" या "क्या सच बोलना मुझे अकेला कर देगा?" यह स्वाभाविक है। सच बोलना साहस मांगता है, और वह भी बिना गर्व या क्रोध के। लेकिन याद रखो, सच बोलना तुम्हारे भीतर की शांति और सच्चाई से जुड़ा है। जब तुम अपने मन को नियंत्रित कर लोगे, तो शब्द अपने आप मधुर और सशक्त बनेंगे।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे अर्जुन, जब तुम सच बोलो, तो उसे अपने अहंकार की चादर से न ढकना। सत्य वह दीपक है जो अंधकार को मिटाता है, पर दीपक को जलाने के लिए तेल की आवश्यकता होती है — वह तेल है प्रेम और विनम्रता। बिना प्रेम के सत्य कठोर और आक्रामक बन जाता है। इसलिए, अपने मन को प्रेम से भर, तब सत्य को बोल। यही धर्म है।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक शिक्षक ने अपने शिष्य से कहा, "सत्य बोलो, पर ध्यान रखो कि तुम्हारा सत्य एक तलवार न बने, जो दूसरों को घायल करे।" शिष्य ने पूछा, "कैसे?" शिक्षक ने एक फूल का उदाहरण दिया — "फूल अपनी खुशबू बिना किसी हिंसा के चारों ओर फैलाता है। सत्य भी ऐसा होना चाहिए — मधुर और सबका कल्याण करने वाला।"

✨ आज का एक कदम

आज एक ऐसा सत्य बोलो, जो तुम्हारे दिल से निकले और जिसे सुनने वाला सहजता से स्वीकार कर सके। कोशिश करो कि उस सत्य में कोई तीव्रता न हो, केवल सच्चाई और प्रेम हो।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने सच को प्रेम और विनम्रता के साथ बोल पा रहा हूँ?
  • क्या मेरा मन आक्रामकता या अहंकार से मुक्त है जब मैं सत्य कहता हूँ?

🌼 सच की शक्ति : प्रेम और विनम्रता के संग
याद रखो, सत्य बोलना केवल शब्दों का खेल नहीं, बल्कि एक आंतरिक स्थिति है — एक ऐसी स्थिति जिसमें अहंकार की जगह प्रेम और संयम हो। जब तुम इस स्थिति में पहुँच जाओगे, तो तुम्हारा सत्य न केवल तुम्हें मुक्त करेगा, बल्कि दूसरों के दिलों को भी छू जाएगा। तुम इस मार्ग पर हो, और मैं तुम्हारे साथ हूँ। शांति और प्रेम के साथ आगे बढ़ो।

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