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बिना अपने लक्ष्यों को छोड़े आंतरिक समर्पण कैसे करें?

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लक्ष्य और समर्पण: एक साथ चलने की कला
साधक,
तुम्हारा मन लक्ष्य की ओर दृढ़ है, पर भीतर कहीं एक उलझन है — कैसे बिना अपने सपनों को त्यागे, आंतरिक समर्पण कर सकूँ? यह प्रश्न जीवन की गहराई में उतरने का पहला कदम है। याद रखो, तुम अकेले नहीं हो, हर युग में अनेक साधक इसी द्वंद्व से गुजरे हैं। चलो, इस राह को भगवद गीता के प्रकाश में समझते हैं।

🕉️ शाश्वत श्लोक

योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते॥

(अध्याय 2, श्लोक 48)
हिंदी अनुवाद:
हे धनञ्जय (अर्जुन), समभाव से युक्त होकर, कर्म करते रहो, और फल की इच्छा तथा असफलता की चिंता त्याग दो। सफलता और असफलता में समान भाव रखो, यही योग है।
सरल व्याख्या:
भगवान कृष्ण कहते हैं कि कर्म करते रहो, पर उसके फल से आसक्ति मत रखो। जब तुम फल के प्रति आसक्ति छोड़ दोगे, तब तुम्हारा मन स्थिर और शांति से भरा रहेगा। यही आंतरिक समर्पण है — लक्ष्य को छोड़े बिना, उसके फल की चिंता त्यागना।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  • कर्म करो, फल की चिंता मत करो: कर्म ही जीवन है, पर उसके फल को नियंत्रित करना संभव नहीं। फल से लगाव छोड़ो, कर्म में लगन रखो।
  • समत्व भाव विकसित करो: सफलता और असफलता दोनों को समान दृष्टि से देखो। यह तुम्हारे मन को स्थिर करता है।
  • अहंकार का त्याग: फल की इच्छा से जुड़ी अहं भावना को पहचानो और उसे धीरे-धीरे छोड़ो।
  • योग और ध्यान का अभ्यास: मन को वर्तमान में केंद्रित करना सीखो, इससे आंतरिक समर्पण आसान होगा।
  • ईश्वर को समर्पण: अपने कर्म ईश्वर को अर्पित कर दो, इससे मन को शांति और संतोष मिलेगा।

🌊 मन की हलचल

तुम सोचते हो — "अगर मैं फल की चिंता छोड़ दूं तो क्या मैं अपने सपनों को पीछे छोड़ नहीं दूंगा?" यह डर स्वाभाविक है। लेकिन असली समर्पण मतलब हार नहीं, बल्कि एक गहरी समझ और विश्वास है कि जो कुछ भी होगा, वह तुम्हारे सर्वोत्तम हित में होगा। तुम्हारा मन अस्थिर है, क्योंकि तुम चाहते हो कि सब कुछ तुम्हारे अनुसार चले, पर जीवन की गति अलग है। इसे स्वीकार करना ही समर्पण की पहली सीढ़ी है।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे अर्जुन, मैं जानता हूँ तुम्हारे मन की बेचैनी। पर याद रखो, मैं तुम्हारे कर्मों का फल नहीं हूँ। तुम कर्म करो, मैं फल की चिंता करता हूँ। जब तुम मुझ पर विश्वास कर दोगे, तब तुम्हारा मन स्थिर होगा और तुम अपने लक्ष्य की ओर बिना बोझ के बढ़ पाओगे। समर्पण का अर्थ है अपने प्रयासों को मेरी इच्छा के हवाले कर देना, न कि अपने सपनों को छोड़ देना।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक किसान था, जिसने अपने खेत में खूब मेहनत की। उसने बीज बोए, पानी दिया, पर बारिश नहीं हुई। वह निराश हुआ, लेकिन उसने अपने प्रयास नहीं छोड़े। उसने सोचा, "मैंने अपना काम किया, अब भगवान पर छोड़ देता हूँ।" कुछ दिनों बाद अच्छी बारिश हुई और फसल अच्छी हुई। किसान ने समझा कि मेहनत और समर्पण साथ-साथ चलते हैं। बिना मेहनत के फल नहीं मिलता, और बिना समर्पण के मन अशांत रहता है।

✨ आज का एक कदम

आज अपने एक छोटे से कार्य को पूरी निष्ठा से करो, पर उसके फल की चिंता छोड़ दो। देखो, मन कैसा शांत रहता है। यह अभ्यास तुम्हें समर्पण की ओर ले जाएगा।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने कर्मों को पूरी निष्ठा से कर रहा हूँ, या फल की चिंता मुझे डरा रही है?
  • क्या मैं अपने प्रयासों को ईश्वर के हाथों में सौंपने को तैयार हूँ?

🌼 समर्पण की ओर पहला कदम
साधक, याद रखो, समर्पण का मतलब अपने लक्ष्य को त्यागना नहीं, बल्कि अपने मन को उस लक्ष्य के प्रति स्थिर और शांत बनाना है। जैसे नदी अपने लक्ष्य समुद्र की ओर बढ़ती है, पर रास्ते में पत्थरों से लड़ती नहीं, वैसे ही तुम भी अपने कर्मों में लगे रहो, पर फल से आसक्ति छोड़ दो। यही जीवन की सच्ची कला है।
तुम्हारा मार्ग उज्जवल हो,
श्रीकृष्ण की कृपा सदैव तुम्हारे साथ रहे।

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