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जब जीवन प्रश्न करता है, गीता समाधान देती है

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गीता के अनुसार आसक्ति क्यों दुःख का कारण बनती है?

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  • गीता के अनुसार आसक्ति क्यों दुःख का कारण बनती है?

आसक्ति के बंधन से मुक्त होने का पहला कदम
साधक, जब मन किसी वस्तु, व्यक्ति या परिणाम से गहरे जुड़ जाता है, तो वह आसक्ति बन जाती है। यह आसक्ति हमारे सुख-दुख की जड़ बन जाती है। तुम्हारे मन की यह व्यथा समझता हूँ, क्योंकि हर कोई कभी न कभी इस जाल में फंसता है। पर याद रखो, तुम अकेले नहीं हो, और गीता में इसका समाधान भी है।

🕉️ शाश्वत श्लोक

योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनंजय।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते॥

— भगवद्गीता, अध्याय 2, श्लोक 48
हिंदी अनुवाद:
हे धनंजय (अर्जुन), आसक्ति त्याग कर, योग की स्थिति में रहकर अपने कर्मों का पालन करो। सफलता और असफलता में समान भाव रखो, यही समत्व योग कहलाता है।
सरल व्याख्या:
जब हम अपने कर्मों को बिना किसी फल की आसक्ति के करते हैं, तभी मन स्थिर और शांत रहता है। आसक्ति से मन विचलित होता है, जिससे दुःख उत्पन्न होता है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. आसक्ति मन की उलझन है: जब हम किसी वस्तु या परिणाम से जुड़ जाते हैं, तो उसका न होना दुःख देता है। गीता बताती है कि फल की चिंता त्यागना ही मन को शांति देता है।
  2. समान दृष्टि अपनाओ: सफलता और असफलता, सुख और दुःख, दोनों को समान दृष्टि से देखना सीखो। इससे मन की हलचल कम होती है।
  3. कर्म पर ध्यान दो, फल पर नहीं: कर्म करना हमारा धर्म है, फल हमारा नियंत्रण नहीं। फल की चिंता छोड़ो, कर्म में निष्ठा रखो।
  4. मन का स्वामी बनो: आसक्ति से मन गुलाम बन जाता है। योग और ध्यान से मन को नियंत्रित करना सीखो।
  5. अहंकार त्यागो: "मैं" और "मेरा" की भावना जब कम होती है, तब आसक्ति भी कम होती है।

🌊 मन की हलचल

तुम पूछते हो, "मैं क्यों जुड़ जाता हूँ? क्यों छोड़ना इतना मुश्किल होता है?" यह स्वाभाविक है, क्योंकि मन ने जो प्रेम या उम्मीद बांधी है, उसे खोना डराता है। पर याद रखो, जो चीजें तुम्हारे नियंत्रण में नहीं, उनसे जुड़ाव तुम्हें और अधिक पीड़ा देता है।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे प्रिय अर्जुन, मैं जानता हूँ तुम्हारा मन कितना बेचैन है। पर समझो, जब तुम फल की चिंता छोड़ दोगे, तब तुम्हारा मन मुक्त हो जाएगा। आसक्ति के बंधन से बाहर आओ, और अपने कर्मों को समर्पित करो। मैं तुम्हारे साथ हूँ, तुम्हारे हर कदम पर।"

🌱 एक छोटी सी कहानी

एक बार एक विद्यार्थी ने अपने गुरु से पूछा, "गुरुदेव, मैं परीक्षा में सफल होने के लिए बहुत चिंतित हूँ। असफलता का डर मुझे घेर लेता है।" गुरु ने कहा, "बेटा, तुम अपने प्रयास पर ध्यान दो, फल पर नहीं। जैसे किसान बीज बोता है, पर फसल का परिणाम प्रकृति पर निर्भर करता है। किसान का कर्तव्य है बीज बोना, फसल की चिंता छोड़ देना।"

✨ आज का एक कदम

आज अपने किसी एक कार्य को पूरी निष्ठा से करो, बिना उसके परिणाम की चिंता किए। देखो, मन कैसा शान्त और हल्का महसूस करता है।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने कर्मों को बिना आसक्ति के कर पा रहा हूँ?
  • क्या मैं सफलता और असफलता को एक समान दृष्टि से देख सकता हूँ?

आसक्ति से मुक्त मन की ओर बढ़ते कदम
प्रिय, आसक्ति से दुःख होता है, पर गीता का ज्ञान तुम्हें उस दुःख से मुक्त कर सकता है। अपने मन को समझो, उसे प्रेम और त्याग दोनों सिखाओ। मैं तुम्हारे साथ हूँ, हर कदम पर। चलो, इस यात्रा में एक साथ चलें।
श्री कृष्ण की कृपा सदैव तुम्हारे साथ रहे।
ॐ शांति: शांति: शांति:

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