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व्यक्तित्व खोए बिना कृष्ण को समर्पित कैसे किया जाए?

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स्वयं को न खोते हुए कृष्ण को समर्पित होना — एक प्रेमपूर्ण समर्पण की कला
साधक, तुम्हारा यह प्रश्न गहरा और सार्थक है। समर्पण का अर्थ केवल अपने अस्तित्व को मिटाना नहीं, बल्कि अपने व्यक्तित्व की सुंदरता को बनाए रखते हुए उस परमात्मा के चरणों में पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ आत्मसमर्पण करना है। यह एक नाजुक संतुलन है — जहाँ तुम स्वयं बने रहो, फिर भी कृष्ण के स्नेह और प्रकाश में खिल उठो।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 18, श्लोक 66
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥

“सभी धर्मों को त्यागकर केवल मेरी शरण में आओ। मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूंगा, इसलिए दुःखी मत हो।”
सरल व्याख्या:
यह श्लोक समर्पण का परम संदेश देता है। यहाँ कृष्ण कहते हैं कि जब तुम अपने सभी बंधनों, भ्रमों और गलतफहमियों को छोड़कर केवल मुझमें विश्वास कर लेते हो, तो मैं तुम्हें मुक्त कर देता हूँ। यहाँ समर्पण का अर्थ है पूर्ण विश्वास और surrender, परंतु इसका मतलब यह नहीं कि तुम अपनी पहचान खो दो, बल्कि तुम अपने अस्तित्व को कृष्ण के प्रकाश में निखारो।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. स्वयं को समझो, फिर समर्पित हो: गीता में कहा गया है कि हमें पहले अपने स्वभाव, गुण और कर्म समझने चाहिए। तभी हम सच्चे मन से समर्पण कर सकते हैं।
  2. कर्म योग अपनाओ: बिना फल की इच्छा के अपने कर्म करो, और फल को कृष्ण को समर्पित कर दो। इससे तुम्हारा व्यक्तित्व मजबूत रहता है, पर अहंकार नहीं।
  3. अहंकार का त्याग, व्यक्तित्व का संरक्षण: अहंकार को छोड़ो, पर अपनी विशिष्टता को अपनाओ। समर्पण अहंकार का नाश है, न कि स्वयं का।
  4. निरंतर स्मरण और भक्ति: कृष्ण को अपने हृदय में स्थान दो, पर अपने विचारों और भावों को भी समझो और स्वीकारो।
  5. संतुलन बनाए रखो: अपने मन, बुद्धि और भावनाओं को कृष्ण के चरणों में समर्पित करो, पर अपने व्यक्तित्व की जड़ों को मजबूत रखो।

🌊 मन की हलचल

तुम सोच रहे हो — "अगर मैं खुद को पूरी तरह कृष्ण को समर्पित कर दूं, तो क्या मैं खुद को खो दूंगा? क्या मेरी पहचान मिट जाएगी?" यह भय सामान्य है। पर याद रखो, समर्पण में स्वयं को मिटाना नहीं, बल्कि स्वयं को पहचान कर उसे एक उच्चतर प्रेम में समर्पित करना है। यह एक आंतरिक यात्रा है, जहाँ तुम्हारा व्यक्तित्व और भी अधिक प्रखर और दिव्य बनता है।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

“साधक, मैं तुम्हारे भीतर की अनूठी चमक को जानता हूँ। मेरा समर्पण तुम्हें कमजोर नहीं करता, बल्कि तुम्हें वह शक्ति देता है जिससे तुम अपने व्यक्तित्व को और भी उज्जवल बना सकते हो। मुझसे जुड़ो, पर अपने अस्तित्व को न खोओ। मैं तुम्हें वह मार्ग दिखाऊँगा जहाँ तुम पूर्ण स्वतंत्रता और प्रेम दोनों पा सको।”

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

कल्पना करो एक नदी की, जो अपने स्रोत से बहती हुई समुद्र से मिलती है। नदी अपनी दिशा, आवाज़ और गति खोती नहीं, बल्कि समुद्र की विशालता में समा जाती है। नदी अपनी पहचान खोती नहीं, बल्कि अपनी यात्रा पूरी करती है। वैसे ही, तुम्हारा व्यक्तित्व कृष्ण के समर्पण में समाहित होकर भी अपनी अनूठी छवि बनाए रखता है।

✨ आज का एक कदम

आज अपने किसी एक कर्म को पूरी निष्ठा और बिना किसी फल की इच्छा के कृष्ण को समर्पित करो। जैसे पढ़ाई, काम, या परिवार की सेवा। देखो कि समर्पण से तुम्हारे कर्मों में क्या बदलाव आता है।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने व्यक्तित्व के साथ प्रेम करता हूँ, या उसे बदलने के लिए दबाव महसूस करता हूँ?
  • समर्पण का अर्थ मेरे लिए क्या है — क्या मैं उसे खोने या पाने के रूप में देखता हूँ?

🌼 समर्पण की राह में स्वयं को अपनाओ
मेरे प्रिय, समर्पण का अर्थ है स्वयं को और अपने व्यक्तित्व को कृष्ण के प्रेम और प्रकाश में खिलने देना। यह कोई त्याग नहीं, बल्कि एक दिव्य मिलन है। इस राह पर चलो, अपने भीतर की अनूठी चमक को पहचानो और उसे कृष्ण के चरणों में समर्पित कर दो। तुम अकेले नहीं, मैं और कृष्ण तुम्हारे साथ हैं।
शुभकामनाएँ और प्रेम के साथ।

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