Skip to header Skip to main navigation Skip to main content Skip to footer
Hindi
Gita Answers
Gita Answers
जब जीवन प्रश्न करता है, गीता समाधान देती है

मुख्य नेविगेशन

  • मुख्य पृष्ठ

अपना संदेह पूछें… गीता राह दिखाएगी

क्या अलगाव का अभ्यास करते हुए गहराई से परवाह करना गलत है?

पग चिन्ह

  • मुख्य पृष्ठ
  • क्या अलगाव का अभ्यास करते हुए गहराई से परवाह करना गलत है?

अलगाव का अभ्यास और गहराई से परवाह — क्या यह विरोधाभासी है?
साधक, जीवन में जब हम अलगाव (वैराग्य) की ओर बढ़ते हैं, तो अक्सर मन में यह सवाल उठता है कि क्या दूसरों से गहरा प्रेम और परवाह करना गलत है? क्या अलगाव का मतलब है सब कुछ छोड़ देना, भावनाओं से कट जाना? आइए, इस उलझन को भगवद गीता के प्रकाश में समझते हैं।

🕉️ शाश्वत श्लोक

"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥"

(भगवद गीता, अध्याय 2, श्लोक 47)
हिंदी अनुवाद:
तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए कर्म के फल की इच्छा से कर्म मत करो, और न ही कर्म न करने में आसक्ति रखो।
सरल व्याख्या:
यह श्लोक हमें सिखाता है कि हमें अपने कर्मों को पूरी निष्ठा से करना चाहिए, पर उनके परिणामों से आसक्ति नहीं रखनी चाहिए। इसका मतलब अलगाव है — कर्म में लगे रहो, पर फल के मोह से मुक्त रहो। परवाह करना और प्रेम करना कर्म का हिस्सा है, इसे त्यागना नहीं।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  • परवाह करना कर्म है, अलगाव उसका फल छोड़ना है। गहरा प्रेम और परवाह करना गलत नहीं, बल्कि यह हमारे स्वाभाविक कर्म हैं। बस फल की चिंता छोड़ दो।
  • अलगाव का अर्थ भावनाओं का त्याग नहीं, बल्कि आसक्ति का त्याग है। जब हम परवाह करते हैं, लेकिन उसके परिणामों को नियंत्रित नहीं करते, तब हम सच्चे वैराग्य की ओर बढ़ते हैं।
  • सर्वत्र समभाव रखो। सभी के प्रति समान प्रेम और करुणा रखो, पर किसी से अपेक्षा मत रखो। यही सच्चा अलगाव है।
  • समर्पण का मार्ग अपनाओ। अपने कर्मों को ईश्वर को समर्पित कर दो, फिर चाहे परिणाम कुछ भी हो। इससे मन की शांति मिलती है।
  • अलगाव से मन की स्थिरता आती है, जिससे हम और गहराई से प्रेम कर पाते हैं। जब मन स्थिर होता है, तब प्रेम और करुणा बिना स्वार्थ के खिलती है।

🌊 मन की हलचल

तुम सोच रहे हो — "अगर मैं गहराई से परवाह करता हूं, तो क्या मैं दुखी नहीं हो जाऊंगा? क्या अलगाव का मतलब है कि मैं अपने प्रियजनों से दूरी बनाऊं?" यह सवाल स्वाभाविक है। प्रेम और परवाह हमारे मन के गहरे तार हैं। लेकिन जब हम अपने प्रेम को फल की आशा से जोड़ देते हैं, तब पीड़ा आती है। इसीलिए अलगाव का अभ्यास हमें सिखाता है कि प्रेम करो, पर आसक्ति छोड़ दो।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे प्रिय, प्रेम करो, पर प्रेम में स्वार्थ और अपेक्षा का ताला मत लगाओ। जब तुम अपने कर्मों को मेरे चरणों में समर्पित कर दोगे, तब तुम्हारा मन स्थिर होगा। अलगाव का अर्थ यह नहीं कि तुम प्यार करना बंद कर दो, बल्कि यह है कि तुम अपने प्यार को स्वतंत्र कर दो। तब तुम्हारा प्रेम सच्चा और अमर होगा।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक शिक्षक ने अपने शिष्य से कहा, "कल्पना करो कि तुम एक बगीचे में हो और एक सुंदर फूल को देखो। तुम उसे प्यार करते हो, उसकी देखभाल करते हो, पर क्या तुम उसे अपनी मुठ्ठी में बंद कर उसे खत्म कर दोगे? नहीं, न? तुम उसे स्वतंत्र छोड़ो, ताकि वह खुलकर खिल सके। उसी तरह, प्रेम करो, पर उसे पकड़ कर मत रखो।"

✨ आज का एक कदम

आज अपने किसी प्रिय व्यक्ति के लिए बिना किसी अपेक्षा के एक छोटा सा प्रेमपूर्ण कार्य करो — जैसे एक स्नेहपूर्ण संदेश भेजना या उनकी सहायता करना। ध्यान रखो, परिणाम की चिंता मत करो, बस अपने कर्म को समर्पित करो।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने प्रेम में आसक्ति और अपेक्षा को पहचान सकता हूँ?
  • क्या मैं अपने कर्मों को बिना फल की चिंता किए कर सकता हूँ?

🌼 प्रेम और अलगाव — साथ-साथ चलते कदम
तुम्हारा प्रेम तुम्हारी सबसे बड़ी शक्ति है, और तुम्हारा अलगाव तुम्हारा सबसे बड़ा शांति स्रोत। दोनों साथ-साथ चल सकते हैं, बस उन्हें समझने और संतुलित करने की कला सीखनी होती है। याद रखो, तुम अकेले नहीं हो इस यात्रा में — मैं तुम्हारे साथ हूँ।

Footer menu

  • संपर्क

Copyright © 2025 Gita Answers - All rights reserved

Gita Answers Gita Answers