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कृष्ण उन लोगों से क्यों प्रेम करते हैं जो निःस्वार्थ सेवा करते हैं?

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  • कृष्ण उन लोगों से क्यों प्रेम करते हैं जो निःस्वार्थ सेवा करते हैं?

प्रेम की गहराई: निःस्वार्थ सेवा में कृष्ण का आशीर्वाद
साधक, यह प्रश्न तुम्हारे हृदय की गहराई से उठता है — कि क्यों भगवान कृष्ण का प्रेम विशेष रूप से उन लोगों के प्रति होता है जो निःस्वार्थ सेवा करते हैं। यह प्रश्न भक्ति योग के सार को समझने का एक सुंदर द्वार है। चलो मिलकर इस दिव्य रहस्य को गीता के प्रकाश में समझते हैं।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 12, श्लोक 13-14
(भगवद गीता 12.13-14)

अद्वेष्टा सर्वभूतानां मैत्रः करुण एव च |
निर्ममो निर्मोहः सच्चरितः सततं योगी ||
शुभाशुभपरित्यागी भक्तिमान्यः स मे प्रियः ||
नात्यश्नतस्तु योगोऽस्ति न चैकान्तमनश्नुते |
न चातिस्वप्नशीलस्य जाग्रतो नैव चार्जुन ||
“जो सर्व प्राणियों से द्वेष नहीं करता, जो मैत्री और करुणा से पूर्ण है,
जो निःस्वार्थ है, मोह-माया से मुक्त है, सदाचारी है और निरंतर योग में लगा रहता है,
वही भक्त मुझे प्रिय है।
जो न तो अत्यधिक भोजन करता है, न अत्यधिक उपवास करता है,
न अधिक सोता है और न जागता है, वही योगी है।”

सरल व्याख्या:
भगवान कहते हैं कि जो व्यक्ति सभी जीवों से प्रेम और करुणा रखता है, जो निःस्वार्थ है, मोह-माया से मुक्त है, सदाचारी है और निरंतर योग में लगा रहता है, वह उनके सबसे प्रिय भक्त है। निःस्वार्थ सेवा और प्रेम की यही भावना उन्हें कृष्ण के दिल के सबसे करीब ले जाती है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. निःस्वार्थ सेवा में ईश्वर की उपस्थिति: जब हम बिना स्वार्थ के सेवा करते हैं, तब हमारा मन स्वच्छ और निर्मल होता है, और हम स्वयं को ईश्वर का एक उपकरण मानते हैं।
  2. मोह-माया से मुक्ति: निःस्वार्थ सेवा से मन का मोह कम होता है, जिससे हम ईश्वर की ओर अधिक आकर्षित होते हैं।
  3. सर्व जीवों में समान दृष्टि: द्वेष और भेदभाव छोड़कर सेवा करना, कृष्ण की भक्ति का मूल है।
  4. योग और भक्ति का संगम: सेवा, भक्ति और योग एक साथ चलें तो वे हमें कृष्ण के प्रेम के निकट ले जाते हैं।
  5. हृदय की शुद्धि: निःस्वार्थ सेवा से हृदय शुद्ध होता है और कृष्ण वहां निवास करते हैं।

🌊 मन की हलचल

शिष्य, तुम्हारे मन में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि क्या सच में बिना किसी स्वार्थ के सेवा करना संभव है? क्या यह केवल आदर्श है या व्यवहारिक भी? तुम्हारा मन कहता होगा, "मैं भी तो चाहता हूँ, लेकिन कभी-कभी स्वार्थ और अपेक्षाएँ साथ आती हैं।" यह संघर्ष तुम्हारे भीतर की सच्चाई है, और यही संघर्ष तुम्हें आध्यात्मिक यात्रा पर आगे बढ़ाता है।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे मेरे प्रिय भक्त, जो मन से बिना किसी अपेक्षा के सेवा करता है, मैं उसके हृदय में वास करता हूँ। जब तुम अपने कर्मों को मेरे लिए समर्पित करते हो, तब तुम्हारा हर कार्य पूजा बन जाता है। निःस्वार्थ सेवा में तुम्हारा मन शुद्ध होता है, और मैं तुम्हें अपने प्रेम से आलोकित करता हूँ। याद रखो, सेवा में जो प्रेम है, वही मुझे सबसे प्रिय है।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक छोटे से गाँव में दो मित्र रहते थे। एक था राम, जो हमेशा सेवा करता लेकिन बदले में कुछ चाहता रहता। दूसरा था कृष्णा, जो बिना किसी स्वार्थ के सेवा करता था। जब गाँव में बाढ़ आई, तो राम ने भी सेवा की, लेकिन वह सोचता रहा कि लोग उसकी मदद का बदला देंगे। कृष्णा ने बिना किसी अपेक्षा के सेवा की। बाढ़ के बाद, गाँव के लोग कृष्णा के प्रति अपार प्रेम और सम्मान दिखाने लगे, और कृष्णा का दिल भी शांति से भर गया। सेवा में स्वार्थ न हो तो वह सच्चा प्रेम बन जाता है, जो कृष्ण के दिल को छू जाता है।

✨ आज का एक कदम

आज अपने जीवन में किसी ऐसे कार्य को चुनो जो पूरी निःस्वार्थ भावना से किया जा सके — चाहे वह घर के छोटे काम हों, किसी मित्र की मदद हो, या किसी जरूरतमंद की सेवा। बिना किसी अपेक्षा के, केवल प्रेम और करुणा से काम करो।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपनी सेवा में स्वार्थ या अपेक्षाएँ तो नहीं जोड़ रहा हूँ?
  • मेरा मन सेवा करते समय कितना निर्मल और प्रेमपूर्ण है?

प्रेम की राह पर एक कदम
साधक, याद रखो, कृष्ण का प्रेम निःस्वार्थ सेवा के हृदय में बसता है। जब हम प्रेम से, बिना किसी स्वार्थ के सेवा करते हैं, तो हम स्वयं को कृष्ण के समीप पाते हैं। यह यात्रा सरल नहीं, परंतु अत्यंत सुंदर है। तुम अकेले नहीं हो, मैं तुम्हारे साथ हूँ। चलो प्रेम और सेवा की इस पावन राह पर एक साथ बढ़ें।
श्रीकृष्ण की कृपा सदैव तुम्हारे साथ रहे। 🙏✨

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