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कृष्ण कहते हैं, "मुझमें समर्पण करो" क्यों?

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समर्पण का स्नेहिल आह्वान: "मुझमें समर्पण करो" क्यों?
साधक, जब जीवन की उलझनों और भावनाओं का सागर हमें घेर लेता है, तब एक आवाज़ आती है—"मुझमें समर्पण करो।" यह केवल एक शब्द नहीं, बल्कि आत्मा की गहराई से निकली एक मधुर पुकार है। आइए, इस पुकार के पीछे छिपे रहस्यों को समझें और अपने हृदय को उसका आश्रय दें।

🕉️ शाश्वत श्लोक

"मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु।
मामेति पाथरं तुमेऽतत्परं मत्परायणाः॥"

— भगवद् गीता 9.34

हिंदी अनुवाद:
"मेरे प्रति मन लगाओ, मुझमें भक्त बनो, मेरी पूजा करो और मुझे प्रणाम करो। जो लोग मुझमें समर्पित हैं, वे मेरे परम भक्त हैं।"
सरल व्याख्या:
यह श्लोक भगवान कृष्ण की ओर से एक प्रेमपूर्ण निमंत्रण है। वे कहते हैं कि जब तुम अपने मन को पूरी तरह से मुझमें लगाओ, मुझमें विश्वास रखो, मेरी भक्ति करो और मुझे प्रणाम करो, तो तुम मेरे सच्चे भक्त बन जाते हो। समर्पण का अर्थ है पूरी तरह से अपने अहंकार, चिंता और संदेह को छोड़कर, उनकी शरण में आना।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. समर्पण से मन की शांति मिलती है: जब हम अपने अहंकार और चिंता को छोड़कर भगवान के चरणों में समर्पित हो जाते हैं, तो मन स्थिर और शांत होता है।
  2. भगवान में विश्वास जीवन को सरल बनाता है: समर्पण का अर्थ है विश्वास करना कि जो भी होगा, वह हमारे लिए श्रेष्ठ है।
  3. अहंकार की हार और प्रेम की जीत: समर्पण अहंकार को पिघलाकर प्रेम की ज्योति जलाता है।
  4. सर्वशक्तिमान की सहायता से मार्ग प्रशस्त होता है: जब हम स्वयं को भगवान के हाथ में सौंप देते हैं, तो वे हमारे लिए रास्ते खोल देते हैं।
  5. समर्पण से कर्मों का बोझ हल्का होता है: अपने कर्मों को भगवान को समर्पित कर हम मानसिक तनाव से मुक्त हो सकते हैं।

🌊 मन की हलचल

"मैं इतना कमजोर क्यों महसूस करता हूँ?
क्या मैं सचमुच किसी पर विश्वास कर सकता हूँ?
अगर मैं समर्पण कर दूं, तो क्या मैं अपना नियंत्रण खो दूंगा?
क्या भगवान मेरे दुखों को समझेंगे?"
ऐसे सवाल मन में आते हैं और ये स्वाभाविक हैं। समर्पण का अर्थ नियंत्रण खोना नहीं, बल्कि सच्चा नियंत्रण पाना है—अपने मन को स्थिर करना और भरोसा करना कि कोई है जो तुम्हारे साथ है।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे प्रिय, मैं तुम्हारे हर दर्द, हर खुशी को जानता हूँ।
जब तुम मुझमें समर्पित हो जाते हो, तो मैं तुम्हारे भीतर की शक्ति बन जाता हूँ।
तुम अकेले नहीं हो, मैं तुम्हारे साथ हूँ।
जो भी परिस्थिति आए, उसे मेरा नाम लेकर स्वीकार करो।
तुम्हारा समर्पण मेरा आशीर्वाद है।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक नाविक समुद्र की विशाल लहरों के बीच फंसा था। उसने खुद को पूरी ताकत से नाव के पतवार को पकड़ रखा था, लेकिन लहरें उसे बार-बार हिला रही थीं। तब उसने अपने साथी नाविक से कहा, "तुम मुझे संभालो, मैं खुद को तुम्हारे हवाले करता हूँ।" जैसे ही उसने समर्पण किया, उसने महसूस किया कि अब वह अकेला नहीं है। उसका साथी उसे सुरक्षित किनारे तक लेकर पहुंचा।
जीवन की नाव भी ऐसी ही है। जब हम खुद को सर्वशक्तिमान के हाथों में सौंप देते हैं, तो वह हमें सुरक्षित किनारे तक ले जाता है।

✨ आज का एक कदम

आज अपने मन से एक बार कहो: "हे प्रभु, मैं अपने सभी भय, संदेह और चिंता तुम्हें सौंपता हूँ। मैं तुम्हारे भरोसे चलता हूँ।" इसे दिल से दोहराओ और महसूस करो कि तुम्हारा मन धीरे-धीरे हल्का हो रहा है।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने जीवन की चुनौतियों में भगवान के समर्पण का अनुभव कर पाया हूँ?
  • मेरे लिए समर्पण का अर्थ क्या है? क्या मैं सच में अपने अहंकार को छोड़ सकता हूँ?

समर्पण की ओर पहला कदम: तुम अकेले नहीं हो
प्रिय, समर्पण का मतलब है अपने आप को खो देना नहीं, बल्कि एक नई पहचान पाना—भगवान के प्रेम और सुरक्षा की छाया में। जब तुम मुझमें समर्पण करोगे, तो तुम्हें पता चलेगा कि तुम्हारे भीतर एक अपार शक्ति जागृत हो रही है।
शांत रहो, विश्वास रखो और अपने हृदय को उस दिव्य प्रेम के लिए खोलो। मैं हमेशा तुम्हारे साथ हूँ।
ॐ शांति: शांति: शांति:।

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