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गीता में सम्मान बाँटने और दोष सहने के बारे में क्या कहा गया है?

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सम्मान और दोष की परिपाटी: नेतृत्व का सच्चा स्वरूप
साधक, जीवन में जब हम नेतृत्व की भूमिका निभाते हैं, तो सम्मान बाँटना और दोष सहना दोनों ही हमारे चरित्र की परीक्षा होते हैं। यह सरल नहीं, परन्तु गीता हमें इस राह पर गहरा और स्थिर मार्गदर्शन देती है। चलिए, इस दिव्य प्रकाश से हम अपने मन के भ्रम को दूर करें।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 18, श्लोक 66
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः॥

हिंदी अनुवाद:
सभी धर्मों को त्यागकर केवल मेरी शरण में आ जाओ। मैं तुम्हें सभी पापों से मुक्त कर दूंगा, इसलिए शोक मत करो।
सरल व्याख्या:
जब हम नेतृत्व करते हैं, तो हमें सम्मान और दोष दोनों को स्वीकार करते हुए, अपने कर्म को भगवान के समर्पित करना चाहिए। इससे मन में स्थिरता आती है और हम पापों से मुक्त होते हैं।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. समत्व का भाव अपनाओ: सम्मान मिले या अपमान, दोनों को समान दृष्टि से देखने की कला सीखो।
  2. कर्म में लगन रखो, फल की चिंता छोड़ो: अपने कर्तव्य को पूरी निष्ठा से निभाओ, परिणाम भगवान पर छोड़ दो।
  3. दोष सहने में धैर्य रखो: दूसरों के दोषों को सहन कर, अपने मन को अशांत न होने दो।
  4. सर्वधर्म समभाव: सभी के प्रति समान आदर और सहिष्णुता का भाव रखो।
  5. आत्मा के स्थिर होने से नेतृत्व मजबूत होता है: जो अपने मन को सम्मान और अपमान से ऊपर रखता है, वही सच्चा नेता होता है।

🌊 मन की हलचल

"जब मैं सम्मान पाता हूँ तो मन खिल उठता है, पर जब दोष सहना पड़ता है तो भीतर से टूट सा जाता हूँ। क्या मैं कमजोर हूँ? क्या यह सही है कि मुझे सब कुछ सहना पड़े?"
प्रिय, यह मानवीय स्वभाव है। पर याद रखो, सच्चा नेतृत्व तब उभरता है जब हम अपने अहंकार को परास्त कर, दूसरों के दोषों को भी प्रेम से सह लेते हैं।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे अर्जुन, जब तुम्हें सम्मान मिले तो उसे अपने अहंकार का भोजन न बनने दो। और जब दोष सहना पड़े तो उसे अपने मन की शांति भंग न करने दो। मैं तुम्हारे कर्मों का फल स्वयं संभालूंगा, तुम बस अपने धर्म का पालन करो।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक शिक्षक ने अपने छात्र को दो पात्र दिए — एक में मीठा जल था, दूसरे में थोड़ा कड़वा। छात्र को दोनों पीने को कहा। छात्र ने मीठा जल खुशी-खुशी पी लिया, पर कड़वे जल को देखकर मुँह बनाया। शिक्षक ने कहा, "जीवन भी ऐसा ही है, कभी सम्मान की मिठास मिलेगी, तो कभी दोष की कड़वाहट। जो इसे समझकर दोनों को स्वीकार कर लेता है, वही सच्चा विद्वान और नेता होता है।"

✨ आज का एक कदम

आज अपने कार्यस्थल या जीवन में किसी ऐसे व्यक्ति को सम्मानित करें, जिसे आपने कम आंका हो। और साथ ही, किसी एक दोष या आलोचना को धैर्यपूर्वक स्वीकार करने का प्रयास करें।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं सम्मान और दोष दोनों को समान भाव से स्वीकार कर सकता हूँ?
  • क्या मेरा मन कर्म के फल से ऊपर उठकर स्थिर रह सकता है?

🌼 सम्मान और दोष की परीक्षा: एक सच्चे नेता की पहचान
याद रखो, नेतृत्व केवल सम्मान पाने का नाम नहीं, बल्कि दोष सहने और फिर भी धैर्य न खोने का नाम है। इस पथ पर चलो, और अपने मन को कृष्ण के चरणों में समर्पित कर दो। तुम अकेले नहीं, मैं तुम्हारे साथ हूँ।
शांति और प्रेम के साथ।

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