Skip to header Skip to main navigation Skip to main content Skip to footer
Hindi
Gita Answers
Gita Answers
जब जीवन प्रश्न करता है, गीता समाधान देती है

मुख्य नेविगेशन

  • मुख्य पृष्ठ

अपना संदेह पूछें… गीता राह दिखाएगी

नुकसान के लिए जिम्मेदारी कैसे लें बिना अपराधबोध के?

पग चिन्ह

  • मुख्य पृष्ठ
  • नुकसान के लिए जिम्मेदारी कैसे लें बिना अपराधबोध के?

नुकसान के लिए जिम्मेदारी कैसे लें बिना अपराधबोध के?

जिम्मेदारी की राह: अपराधबोध से ऊपर उठना
साधक, जब हम नेतृत्व और कार्य की दुनिया में कदम रखते हैं, तो नुकसान या असफलता का बोझ अक्सर हमारे मन को घेर लेता है। तुम्हारे मन में यह सवाल उठना स्वाभाविक है — कैसे मैं अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करूँ, पर अपराधबोध की जंजीरों में फंसे बिना? चलो इस उलझन को भगवद गीता के प्रकाश में समझते हैं।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 3, श्लोक 30:
मयि सर्वाणि कर्माणि संन्यस्याध्यात्मचेतसा।
निर्व्याजं निराशीर्‍युक्तं युक्तात्मे त्वं मत्परः॥

हिंदी अनुवाद:
हे अर्जुन! अपने सारे कर्म मुझमें समर्पित करते हुए, आत्मा को आध्यात्मिक बुद्धि से युक्त रखो, बिना किसी स्वार्थ या मोह के, और मुझमें ही स्थित रहो।
सरल व्याख्या:
जब तुम अपने कार्यों को ईश्वर के समर्पण में करोगे, बिना फल की चिंता किए, तब जो भी परिणाम आएगा, वह तुम्हारे अहंकार या अपराधबोध का कारण नहीं बनेगा। जिम्मेदारी स्वीकार करना है, पर अपने मन को फल की चिंता से ऊपर उठाना है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  • कर्तव्य और फल का भेद समझो: कर्म करो, पर फल की चिंता मत करो। जिम्मेदारी लेना कर्म है, अपराधबोध नहीं।
  • स्वयं को कर्म का दास समझो, फल का अधिकारी नहीं: परिणाम तुम्हारे नियंत्रण से बाहर हैं, पर प्रयास तुम्हारे हैं।
  • अहंकार से ऊपर उठो: जब तुम अपने कार्य को स्वार्थ या अहंकार से अलग कर दोगे, तो अपराधबोध का बोझ नहीं होगा।
  • संतुलित मन बनाए रखो: परिस्थिति के अनुसार सीखो, सुधारो, पर खुद को दोषी ठहराने से बचो।
  • ईश्वर में विश्वास रखो: कर्म की जिम्मेदारी लेते हुए, ईश्वर के नियति पर भरोसा रखो।

🌊 मन की हलचल

तुम्हारा मन कहता होगा, "अगर मैं गलत हुआ, तो क्या मैं दोषी नहीं हूँ? क्या मेरी गलती की कीमत मुझे नहीं चुकानी चाहिए?" यह स्वाभाविक है। पर याद रखो, जिम्मेदारी का अर्थ खुद को पीटना नहीं, बल्कि स्थिति को समझना और आगे बढ़ना है। अपराधबोध एक जंजीर है, जो तुम्हें आगे बढ़ने से रोकता है।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे प्रिय अर्जुन, जब तुम कर्मयोगी बनोगे, तब तुम देखोगे कि जिम्मेदारी लेना और अपराधबोध महसूस करना दो अलग बातें हैं। मैं चाहता हूँ कि तुम अपने कर्मों को पूरी निष्ठा से करो, पर फल की चिंता मुझ पर छोड़ दो। तुम अकेले नहीं हो, मैं तुम्हारे साथ हूँ। अपने मन को शांत रखो, और कर्म के मार्ग पर दृढ़ रहो।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक छात्र परीक्षा में फेल हो गया। उसने अपने आप को बहुत दोषी ठहराया, अपराधबोध में डूब गया। उसके गुरु ने कहा, "तुम्हारा प्रयास तुम्हारा कर्म है, परिणाम तुम्हारे नियंत्रण से बाहर। फेल होना तुम्हारा अंत नहीं, बल्कि सीखने का अवसर है। जिम्मेदारी लेना यह नहीं कि खुद को दोषी मानो, बल्कि यह समझना कि अगली बार बेहतर कैसे कर सकते हो।"

✨ आज का एक कदम

आज अपने किसी कार्य या निर्णय की जिम्मेदारी स्वीकार करो, पर साथ ही अपने मन से यह कहो: "मैंने अपना सर्वोत्तम प्रयास किया। परिणाम मेरी सीमा से बाहर है। मैं अपराधबोध से मुक्त हूँ।"

🧘 अंदर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने कर्मों को पूरी निष्ठा से करता हूँ, या परिणाम की चिंता में उलझा रहता हूँ?
  • क्या मैं जिम्मेदारी को अपने विकास का हिस्सा मानता हूँ, या खुद को दोषी ठहराता हूँ?

🌼 जिम्मेदारी की शक्ति: आत्मविश्वास का सच्चा आधार
साधक, जिम्मेदारी लेना एक साहस है, पर उससे भी बड़ा साहस है बिना अपराधबोध के अपने कर्मों को स्वीकार करना। यह तुम्हें नेतृत्व की असली शक्ति देगा, और तुम्हारा मन शांत, सशक्त और मुक्त होगा। तुम अकेले नहीं हो, हर कदम पर मैं तुम्हारे साथ हूँ। आगे बढ़ो, विश्वास के साथ।

Footer menu

  • संपर्क

Copyright © 2025 Gita Answers - All rights reserved

Gita Answers Gita Answers