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गीता के अनुसार क्रोधित लोगों से कैसे निपटें?

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क्रोध के तूफान में शांति की नाव पकड़ना
साधक, जब क्रोध का आगमन होता है, तो मन एक तूफान की तरह उथल-पुथल मचाने लगता है। तुम अकेले नहीं हो; हर मनुष्य के भीतर कभी न कभी यह आग भड़कती है। परन्तु भगवद गीता हमें सिखाती है कि इस क्रोध के समंदर में कैसे स्थिर रहना है, कैसे अपने अंदर की शांति को बनाए रखना है।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 2, श्लोक 62-63:
ध्यानस्थः कामक्रोधवियुक्तो युक्त इत्युच्यते।
कामात्मनामकारसंश्लिष्टात्मना मनसा स्मरन्॥ 62॥
संस्पर्शान्कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा सर्वसङ्गतः।
कामक्रोधवियुक्तात्मा जितात्मा जितेन्द्रियः॥ 63॥

हिंदी अनुवाद:
जो मन काम और क्रोध से रहित होता है, उसे योगी कहा जाता है। जो मनुष्य काम और क्रोध से दूर रहता है, अपने मन को संयमित करता है, इन्द्रियों को जीत लेता है, वही सच्चा ज्ञानी है।
सरल व्याख्या:
जब हम काम और क्रोध के प्रभाव से मुक्त हो जाते हैं, और अपने मन और इन्द्रियों पर नियंत्रण कर लेते हैं, तभी हम शांति और ज्ञान की ओर बढ़ते हैं। क्रोध को समझना, उसे त्यागना और संयमित होना ही सच्ची विजय है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. स्वयं को समझो, क्रोध को नहीं बढ़ाओ: गीता कहती है कि क्रोध तब उत्पन्न होता है जब इच्छाएं पूरी न हों। अतः अपनी अपेक्षाओं को समझो और उन्हें संतुलित करो।
  2. सयंम ही सबसे बड़ा शस्त्र है: क्रोध पर नियंत्रण ही मनुष्य को सच्चा योद्धा बनाता है। संयमित मन ही स्थिरता और शांति का द्वार खोलता है।
  3. भावनाओं को स्वीकारो, पर उनके गुलाम मत बनो: क्रोध को दबाने की बजाय उसे पहचानो, पर उसे अपने कर्मों को नियंत्रित न करने दो।
  4. कर्म योग अपनाओ: अपने कर्तव्य में लीन रहो, फल की चिंता छोड़ दो; इससे क्रोध का दमन होगा।
  5. आत्मा की स्थिरता खोजो: याद रखो, तुम आत्मा हो, शरीर और मन के क्रोध से अलग, अतः आत्मा की शांति को पहचानो।

🌊 मन की हलचल

तुम महसूस कर रहे हो कि क्रोध तुम्हारे मन को घेर रहा है, तुम्हें असहज कर रहा है। यह सोचकर भी डर लगता होगा कि कहीं यह क्रोध तुम्हारे रिश्तों, काम या जीवन को नुकसान न पहुंचाए। यह स्वाभाविक है। पर याद रखो, क्रोध तुम्हारा दुश्मन नहीं, बल्कि तुम्हारे भीतर की एक चेतावनी है कि कुछ ठीक नहीं चल रहा। उसे समझो, पर उसे अपने ऊपर हावी मत होने दो।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे अर्जुन, जब क्रोध तुम्हारे मन को घेरता है, तो उसे अपने भीतर के सागर की तरह देखो। वह तूफान है, जो स्थायी नहीं। जैसे समुद्र की लहरें फिर शांत हो जाती हैं, वैसे ही तुम्हारा मन भी शांत होगा। तुम उस आत्मा के रूप में स्थिर रहो, जो न कभी क्रोध होता है, न कभी क्षुब्ध। याद रखो, मैं तुम्हारे भीतर हूँ, तुम्हारे साथ हूँ। संयम रखो, और अपने कर्म पर ध्यान दो। क्रोध का सामना धैर्य और विवेक से करो।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

कल्पना करो कि तुम एक नदी के किनारे खड़े हो। नदी में अचानक तेज़ बहाव और उफान है। अगर तुम उस बहाव के साथ बह जाओगे, तो कहीं दूर बह जाओगे, पर अगर तुम नदी के किनारे एक मजबूत पत्थर की तरह खड़े रहो, तो नदी तुम्हें नहीं हिला पाएगी। क्रोध भी वैसा ही है — वह एक बहाव है। यदि तुम संयमित रहो, तो वह तुम्हें बहा नहीं पाएगा।

✨ आज का एक कदम

जब भी क्रोध आए, गहरी सांस लो और 10 तक धीरे-धीरे गिनो। इस छोटे से अभ्यास से तुम्हारा मन शांत होगा और क्रोध पर नियंत्रण बढ़ेगा।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने क्रोध की वजह को समझ रहा हूँ?
  • क्या मैं क्रोध के बजाय शांति और संयम को चुन सकता हूँ?

शांति की ओर एक कदम
साधक, क्रोध तुम्हारा शत्रु नहीं, बल्कि तुम्हें सुधारने वाला गुरु है। उसे समझो, स्वीकारो, पर उसे अपने जीवन का अधिपति न बनने दो। गीता के उपदेशों को अपने हृदय में उतारो और शांति की ओर बढ़ो। याद रखो, तुम अकेले नहीं हो, और हर कदम पर मैं तुम्हारे साथ हूँ। शांति तुम्हारे भीतर है, बस उसे खोजो।
ॐ शांति: शांति: शांति:।

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