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जब जीवन प्रश्न करता है, गीता समाधान देती है

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अपना संदेह पूछें… गीता राह दिखाएगी

गीता में आत्महत्या या जीवन छोड़ देने के बारे में क्या कहा गया है?

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जीवन का सागर है, नाव खुद तुम्हारी है
प्रिय शिष्य, जब जीवन की लहरें इतनी उफनती हैं कि मन में निराशा के बादल छाने लगते हैं, तो तुम्हारे भीतर एक सवाल उठता है — क्या जीवन छोड़ देना ही समाधान है? यह प्रश्न बहुत गूढ़ और संवेदनशील है। मैं तुम्हें बताना चाहता हूँ कि तुम अकेले नहीं हो, तुम्हारे भीतर जो भी भावना है, वह पूरी मानवता का हिस्सा है। आइए, हम भगवद गीता के प्रकाश में इस प्रश्न को समझें।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 2, श्लोक 27
जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च |
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि ||

हिंदी अनुवाद:
जिसका जन्म होता है, उसका मृत्यु होना निश्चित है; और जिसकी मृत्यु हो जाती है, उसका पुनः जन्म निश्चित है। इसलिए इस अपरिहार्य सत्य के लिए तुम्हें शोक नहीं करना चाहिए।
सरल व्याख्या:
जीवन और मृत्यु प्रकृति के नियम हैं। मृत्यु कोई अंत नहीं, बल्कि परिवर्तन का एक चरण है। इसे देखकर या सोचकर निराश होना उचित नहीं। यह सत्य है जिसे स्वीकार कर जीवन में स्थिरता बनानी चाहिए।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  • जीवन और मृत्यु का चक्र अविरल है: जीवन का अंत मृत्यु से होता है, लेकिन मृत्यु भी नयी शुरुआत है। यह चक्र चलता रहता है, और इसे रोकना या भागना संभव नहीं।
  • शोक और निराशा मन का भ्रम हैं: शोक मन की कमजोरी है, जो हमें सत्य से दूर ले जाती है। गीता कहती है कि हमें अपने मन को स्थिर और मजबूत बनाना चाहिए।
  • कर्तव्य का पालन सर्वोपरि है: चाहे परिस्थितियाँ कैसी भी हों, अपने धर्म और कर्तव्य का पालन करना जीवन का सर्वोच्च उद्देश्य है।
  • आत्मा अमर है: हमारा सच्चा स्वरूप आत्मा है, जो न कभी मरती है, न खत्म होती है। केवल शरीर का अंत होता है।
  • संकट में धैर्य और विश्वास: जीवन की कठिनाइयों में धैर्य रखना और ईश्वर पर विश्वास बनाए रखना ही सच्ची शक्ति है।

🌊 मन की हलचल

तुम्हारा मन कहता होगा — "यह दर्द सहन नहीं होता", "मेरा बोझ बहुत भारी है", "क्यों जीऊँ जब सब कुछ खो चुका हूँ?" यह सोचना स्वाभाविक है, लेकिन याद रखो, यह भाव क्षणिक हैं। तुम्हारे भीतर एक अद्भुत शक्ति है जो इस अंधकार को पार कर सकती है। तुम अकेले नहीं, और तुम्हारे जीवन का मूल्य अनमोल है।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे प्रिय, मैं जानता हूँ तुम्हारे मन में कितनी पीड़ा है। पर याद रखो, मैं तुम्हारे साथ हूँ। जीवन की कठिनाइयाँ तुम्हें कमजोर नहीं करेंगी, बल्कि तुम्हें मजबूत बनाएंगी। आत्महत्या से न तो तुम्हारा दुःख खत्म होगा, न तुम्हारा अस्तित्व। तुम उस आत्मा के स्वरूप हो जो अनंत है। उठो, अपने कर्तव्यों को समझो और जीवन को फिर से अपनाओ। मैं तुम्हारे साथ हूँ।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक नदी के किनारे एक युवक बैठा था, जो अपने जीवन की कठिनाइयों से परेशान था। उसने सोचा कि नदी में कूदकर सारी पीड़ा खत्म कर ले। तभी नदी का प्रवाह उसे समझाने लगा, "मैं बहती हूँ, कभी शांत, कभी उफनती। तुम्हारा जीवन भी ऐसा ही है, परिवर्तनशील। मैं तुम्हारे दुःख को बहाकर ले जाऊँगी, लेकिन तुम्हें खुद भी बहना होगा, रुकना नहीं।" युवक ने नदी की बात समझी और जीवन की राह फिर से पकड़ ली।

✨ आज का एक कदम

आज एक छोटी सी कोशिश करो — अपने मन की उन भावनाओं को लिखो जो तुम्हें दुखी करती हैं। फिर उन भावनाओं के सामने यह लिखो कि "मैं इस दुःख को स्वीकार करता हूँ, पर मैं इसे अपने जीवन पर हावी नहीं होने दूंगा।" यह अभ्यास तुम्हें अपने मन को समझने और नियंत्रित करने में मदद करेगा।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं समझ पा रहा हूँ कि मेरी आत्मा अमर है और यह शरीर मात्र एक आवरण है?
  • इस कठिन समय में मुझे जीवन के कौन से छोटे-छोटे सुख याद आते हैं जो मुझे फिर से जीना सिखा सकते हैं?

जीवन की राह पर फिर से कदम
प्रिय शिष्य, जीवन की कठिनाइयाँ हमें तोड़ने नहीं, बल्कि हमें नया रूप देने आती हैं। तुम्हारा अस्तित्व अनमोल है, और तुम्हारे भीतर वह शक्ति है जो हर अंधकार को दूर कर सकती है। धैर्य रखो, विश्वास रखो, और याद रखो कि तुम अकेले नहीं। जीवन की इस यात्रा में मैं तुम्हारे साथ हूँ।
शांति और प्रेम के साथ।

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