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गीता मृत्यु के बारे में क्या सिखाती है?

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मृत्यु: अंत नहीं, एक नई शुरुआत
साधक, जब मृत्यु का विचार मन को घेर लेता है, तो यह स्वाभाविक है कि भय, चिंता और अनिश्चितता की लहरें उठती हैं। परन्तु जान लो, तुम अकेले नहीं हो। हर जीव इसी चक्र का हिस्सा है। भगवद गीता में मृत्यु को एक अंतिम समाप्ति नहीं, बल्कि परिवर्तन और पुनःजन्म का एक पड़ाव बताया गया है। चलो, इस गूढ़ सत्य को समझने की ओर एक साथ कदम बढ़ाते हैं।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 2, श्लोक 27:
जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च |
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि || 2.27 ||

हिंदी अनुवाद:
जिसका जन्म होता है, उसकी मृत्यु निश्चित है, और जिसकी मृत्यु होती है, उसका पुनर्जन्म भी निश्चित है। इसलिए, जो अपरिहार्य है उसके लिए तू शोक नहीं करना चाहिए।
सरल व्याख्या:
यह श्लोक हमें यह सिखाता है कि जन्म-मृत्यु का चक्र अनिवार्य है। मृत्यु को भय या शोक का कारण नहीं समझना चाहिए, क्योंकि यह जीवन का एक स्वाभाविक और अपरिहार्य हिस्सा है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. मृत्यु एक अंत नहीं, परिवर्तन है: आत्मा अमर है, शरीर नश्वर। जैसे कपड़ा फटने पर नया कपड़ा पहनते हैं, वैसे ही आत्मा शरीर बदलती है।
  2. शोक से ऊपर उठो: जो घटित होता है, वह नियति का हिस्सा है। उसे स्वीकार कर, अपने कर्मों पर ध्यान केंद्रित करो।
  3. ध्यान स्थिर रखो: मृत्यु की अनिश्चितता में भी मन को स्थिर रखना सीखो, यही सच्चा साहस है।
  4. जीवन का उद्देश्य समझो: मृत्यु के भय से मुक्त होकर, अपने जीवन के उद्देश्य को पहचानो और उसे पूरा करो।
  5. आत्मिक चेतना का अनुभव करो: शरीर के क्षय के बावजूद, आत्मा अमर है, इसे समझना और अनुभव करना आवश्यक है।

🌊 मन की हलचल

"मृत्यु का विचार आते ही मन घबराता है, दिल भारी हो जाता है। क्या यह अंत है? क्या सबकुछ खत्म हो जाएगा? मैं कैसे इस अनिश्चितता से जूझूं?" ये भाव स्वाभाविक हैं। तुम्हारा मन अपने अस्तित्व की गहराई से जुड़ा यह प्रश्न पूछ रहा है। भय और शोक के बीच, तुम्हें एक स्नेहिल सहारा चाहिए, जो तुम्हें इस अंधकार से बाहर निकाले।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे साधक, मैं तुम्हें बताता हूँ, आत्मा न तो जन्मी है, न मरेगी। वह न तो कभी अस्तित्व से समाप्त होती है, न कभी उत्पन्न होती है। जैसे तुम पुराने वस्त्र छोड़कर नए वस्त्र पहनते हो, वैसे ही आत्मा शरीर छोड़कर नया शरीर धारण करती है। इसलिए मृत्यु को भय की दृष्टि से मत देखो। शोक से ऊपर उठो, अपनी चेतना को स्थिर करो और अपने धर्म का पालन करो। मैं तुम्हारे साथ हूँ, हमेशा।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक विद्यार्थी अपने गुरु से बोला, "गुरुजी, मृत्यु से मुझे भय लगता है। क्या मृत्यु का अंत सच में होता है?" गुरु ने एक मोमबत्ती जलाई और कहा, "देखो, जब मैं इसे बुझाता हूँ, तो क्या मोमबत्ती खत्म हो जाती है?" विद्यार्थी ने कहा, "नहीं, लेकिन उसकी लौ चली जाती है।" गुरु मुस्कुराए और बोले, "ठीक है, जैसे यह लौ अगली मोमबत्ती में जगती है, वैसे ही आत्मा एक शरीर से दूसरे शरीर में जाती है। मृत्यु केवल एक संक्रमण है, अंत नहीं।"

✨ आज का एक कदम

आज एक पल निकालकर, मृत्यु के भय को स्वीकार करो। उसे अपने मन में आने दो, पर उसे अपने जीवन पर हावी न होने दो। गहरी सांस लेकर कहो, "मैं अनित्य को स्वीकार करता हूँ, और अपने जीवन को पूर्णता से जीऊंगा।"

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं मृत्यु को केवल एक अंत मानता हूँ, या एक परिवर्तन के रूप में भी देख सकता हूँ?
  • मृत्यु के भय से ऊपर उठकर, मैं अपने जीवन का उद्देश्य क्या बनाना चाहता हूँ?

जीवन की नदी में मृत्यु एक पुल है
साधक, मृत्यु जीवन की नदी में एक पुल की तरह है, जो हमें एक तट से दूसरे तट तक ले जाता है। इस पुल से डरना नहीं, बल्कि उस पार के नए जीवन को समझना है। तुम्हारे भीतर जो आत्मा है, वह अमर है, और मैं तुम्हारे साथ हूँ इस सफर में। शांति और विश्वास के साथ आगे बढ़ो।

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