Skip to header Skip to main navigation Skip to main content Skip to footer

User account menu

  • प्रवेश
मुख्य पृष्ठ
Gita Answers
When Life ask Questions Gita Answers

Main navigation

  • मुख्य पृष्ठ

रिश्तों में भावनात्मक रूप से स्थिर कैसे रहें?

पग चिन्ह

  • मुख्य पृष्ठ
  • रिश्तों में भावनात्मक रूप से स्थिर कैसे रहें?

दिल की गहराइयों में स्थिरता का दीप जलाएं
साधक, रिश्तों की दुनिया में भावनाओं का तूफान आना स्वाभाविक है। कभी खुशी, कभी दुख, कभी उम्मीदें, कभी निराशाएं—ये सब मिलकर हमारे मन को हिला देते हैं। लेकिन जानो, तुम अकेले नहीं हो। हर दिल में यह संघर्ष होता है। यही जीवन की परीक्षा है। आइए, भगवद गीता की अमृत वाणी से उस स्थिरता का रास्ता खोजें जो तुम्हारे मन को अडिग और शांत बनाए।

🕉️ शाश्वत श्लोक

योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनञ्जय।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते॥

— भगवद गीता, अध्याय 2, श्लोक 48
अर्थ: हे धनंजय (अर्जुन)! मन को स्थिर रखकर, अपने कर्म करो। सफलता या असफलता में समान भाव रखो। इसी समभाव को योग कहा जाता है।

सरल व्याख्या:
जब हम अपने कर्मों में लगे होते हैं, तब भी सफलता या असफलता के फल में आसक्त नहीं होते, तब हमारा मन स्थिर रहता है। भावनाओं के उतार-चढ़ाव में भी हम संतुलित रहते हैं, यही सच्चा योग है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. भावनाओं को समझो, उन्हें दबाओ नहीं: भावनाएं आती-जाती रहती हैं, उन्हें स्वीकार करना सीखो, उनसे भागना नहीं।
  2. फल की चिंता छोड़ो: रिश्तों में जो भी करो, अपने प्रयासों पर ध्यान दो, न कि परिणाम पर।
  3. समत्व भाव अपनाओ: सुख-दुख, प्रेम-निराशा में समानता बनाए रखो। यह मन की स्थिरता की कुंजी है।
  4. स्वयं के भीतर झांको: अपने मन की गहराई में जाकर पहचानो कि तुम्हारे असली भाव क्या हैं।
  5. धैर्य और संयम रखो: रिश्तों में समय के साथ समझ और सहिष्णुता बढ़ती है।

🌊 मन की हलचल

तुम्हारा मन कहता होगा — "क्यों मेरे साथ ऐसा होता है? मैं इतनी मेहनत करता हूँ फिर भी समझ नहीं पाते।" यह निराशा, यह बेचैनी स्वाभाविक है। लेकिन याद रखो, हर रिश्ता एक यात्रा है, और हर यात्रा में मोड़ आते हैं। उस मोड़ पर धैर्य रखो, खुद को समझाओ कि यह भी गुजर जाएगा। तुम अकेले नहीं हो, यह भावना सबके मन में रहती है।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे प्रिय, जब भी तुम्हारा मन अशांत हो, मुझसे जुड़ो। याद रखो, मैं तुम्हारे भीतर हूँ। अपने कर्मों में लीन रहो, फल की चिंता छोड़ दो। रिश्तों की गहराई में उतरने के लिए धैर्य और प्रेम दोनों चाहिए। तू स्थिर रहेगा, तो तुम्हारे आस-पास के लोग भी स्थिर होंगे। मैं तुम्हारे साथ हूँ, हर कदम पर।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

कल्पना करो एक नदी को, जो अपने रास्ते में कई पत्थरों से टकराती है। नदी कभी रुकती नहीं, वह अपने मार्ग पर स्थिर रहती है, कभी गुस्से में तेज बहती है, कभी धीरे-धीरे, लेकिन हमेशा आगे बढ़ती रहती है। इसी तरह, हमारे रिश्ते भी हैं — कभी सुखद, कभी चुनौतीपूर्ण। हमें नदी की तरह अपने मन को स्थिर और लचीला बनाना है, ताकि हम हर परिस्थिति में प्रेम और समझ के साथ आगे बढ़ सकें।

✨ आज का एक कदम

आज, जब भी तुम्हें रिश्तों में भावनात्मक उथल-पुथल महसूस हो, गहरी सांस लो और अपने आप से कहो:
"मैं अपने कर्म में लगा हूँ, फल की चिंता छोड़ता हूँ। मेरा मन स्थिर है।"
इस अभ्यास को दिन में कम से कम तीन बार दोहराओ।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने रिश्तों में अपने भावनात्मक प्रतिक्रियाओं को समझ पा रहा हूँ?
  • क्या मैं सफलता और असफलता दोनों में समान भाव रख सकता हूँ?

शांति की ओर एक कदम — तुम स्थिर हो, तुम सक्षम हो
प्रिय, रिश्तों की जटिलताओं में भी तुम्हारा मन स्थिर रह सकता है। यह तुम्हारे भीतर की शक्ति है, जो गीता की शिक्षाओं से जागृत होती है। विश्वास रखो, धैर्य रखो और प्रेम के साथ आगे बढ़ो। मैं तुम्हारे साथ हूँ।
शुभकामनाएँ। 🌺

Footer menu

  • संपर्क
Powered by Drupal

Copyright © 2025 Company Name - All rights reserved

Developed and Designed by Alaa Haddad at Flash Web Center, LLC