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तर्क-वितर्क या झगड़ों के दौरान शांत कैसे रहें?

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शांति की ओर एक कदम: झगड़ों में भी मन को कैसे रखें शांत?
साधक, जब जीवन में तर्क-वितर्क या विवाद होते हैं, तब मन की शांति बनाए रखना सबसे बड़ा चुनौतीपूर्ण कार्य होता है। तुम्हारा यह प्रश्न बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि मन की शांति ही जीवन का सार है। आइए, भगवद गीता की दिव्य शिक्षाओं से इस उलझन को सुलझाएं।

🕉️ शाश्वत श्लोक

श्लोक:
श्रीभगवानुवाच:
क्लेशोऽधिकतरस्तेषामव्यथिनोऽधिकं मनः।
अव्यथं चित्तमात्मनः समधिगच्छति मामपि॥

(भगवद गीता, अध्याय ६, श्लोक ६)
हिंदी अनुवाद:
जो मनुष्य अधिकतर कष्टों और व्यथाओं से ग्रस्त रहता है, उसका मन भी अधिक अशांत होता है। परन्तु जो आत्मा में स्थिर, अव्यथित चित्त वाला होता है, वही मुझ तक (परमात्मा तक) पहुँचता है।
सरल व्याख्या:
जब मन अशांत होता है, तब बाहरी तर्क-वितर्क और झगड़े हमें अंदर तक हिला देते हैं। पर जो व्यक्ति अपने मन को स्थिर और शांत रखने का अभ्यास करता है, वह न केवल स्वयं को कष्ट से बचाता है, बल्कि परम शांति का अनुभव करता है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. मन को नियंत्रित करना सीखो: मन की हर हलचल पर ध्यान न दो, उसे अपने नियंत्रण में रखो।
  2. स्वयं को तर्क-वितर्क से ऊपर समझो: बहस में जीतना जरूरी नहीं, शांत रहना जरूरी है।
  3. भावनाओं पर काबू रखो: क्रोध और अहंकार को पहचानो और उन्हें बढ़ने न दो।
  4. सर्वथा समभाव रखो: सभी के प्रति समान दृष्टि और सहिष्णुता रखो।
  5. आत्मा की स्थिरता को पहचानो: तुम्हारा असली स्वरूप शांति और प्रेम है, उसे याद रखो।

🌊 मन की हलचल

तुम्हारा मन कहता है — "मैं क्यों शांत रहूं जब सामने वाला मुझे गलत समझता है? मैं भी अपनी बात रखूँगा।" यह स्वाभाविक है। पर क्या तुम्हें पता है, हर बार लड़ाई से मन की पीड़ा बढ़ती है, और शांति दूर होती है। तुम्हारा मन उलझन में है, एक ओर बोलना चाहता है, दूसरी ओर शांति चाहता है। यह द्वंद्व तुम्हारे भीतर है। इसे समझो, स्वीकार करो, और फिर धीरे-धीरे इसे शांत करने का प्रयास करो।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे अर्जुन, जब तेरा मन तूफान की तरह उग्र हो, तब याद रख कि तू केवल शरीर नहीं, अपितु आत्मा है। तू अपनी आत्मा की शांति को क्यों भंग करता है? विवाद में जीतना नहीं, अपने मन को जीतना सबसे बड़ी विजय है। शांति वह धन है जो कभी खत्म नहीं होता। उसे अपने भीतर खोज।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक नदी के किनारे दो पक्षी आपस में लड़ने लगे। वे अपनी-अपनी बात पर अड़े रहे और लड़ते रहे। नदी के किनारे खड़े एक साधु ने कहा, "तुम दोनों क्यों लड़ रहे हो?" पक्षियों ने कहा, "हम अपनी बात सही साबित करना चाहते हैं।" साधु ने मुस्कुराते हुए कहा, "देखो नदी को, वह सब कुछ सह लेती है, फिर भी वह शांत रहती है। तुम भी अपने मन को नदी की तरह शांत रखो, झगड़े से ऊपर उठो।"

✨ आज का एक कदम

जब भी तर्क-वितर्क हो, एक गहरी सांस लो और अपने मन को "मैं शांत हूँ" कहकर याद दिलाओ। इस छोटे से अभ्यास से मन की हलचल कम होगी।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं झगड़े में अपनी शांति खो रहा हूँ?
  • शांति पाने के लिए मैं क्या छोड़ सकता हूँ?

शांति की चाबी तुम्हारे भीतर है
शिष्य, याद रखो, तर्क-वितर्क या झगड़ों के बीच भी तुम शांति का दीपक जला सकते हो। यह दीपक तुम्हारे मन की दृढ़ता और संयम से जलता है। अपने भीतर उस शांति को खोजो, उसे पोषित करो। मैं तुम्हारे साथ हूँ, तुम्हारी आंतरिक शक्ति जागृत हो।
शांत मन, सुखी जीवन की कुंजी है।
शुभकामनाएँ। 🙏🌸

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