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जब जीवन प्रश्न करता है, गीता समाधान देती है

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गीता का भावनात्मक आसक्ति से क्या दृष्टिकोण है?

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आसक्ति की जंजीरों से मुक्त होने का संदेश
प्रिय शिष्य, जब मन की गहराइयों में भावनाओं की लहरें उठती हैं, और हम किसी वस्तु, व्यक्ति या परिस्थिति से इतनी गहराई से जुड़ जाते हैं कि वह हमारी शांति का आधार बन जाती है, तब गीता हमें एक अनमोल उपहार देती है — आसक्ति से मुक्त होने का रास्ता। यह मुक्त होना भावनाओं का त्याग नहीं, बल्कि उनका सही स्वरूप समझना और संतुलित रहना है।

🕉️ शाश्वत श्लोक

अध्याय 2, श्लोक 47
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

हिंदी अनुवाद:
तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, उसके फलों में कभी नहीं। इसलिए कर्मफल की इच्छा मत करो और न ही कर्म न करने में आसक्ति रखो।
सरल व्याख्या:
हमारा कर्तव्य है कर्म करना, लेकिन उसके परिणामों में आसक्ति रखना मन को बेचैन करता है। गीता कहती है कि कर्म करो, पर फल की चिंता छोड़ दो। जब हम फल की चिंता छोड़ देते हैं, तभी मन की शांति आती है।

🪬 गीता की दृष्टि से मार्गदर्शन

  1. आसक्ति से मन बंधता है: जब हम किसी वस्तु या व्यक्ति से अत्यधिक जुड़ाव महसूस करते हैं, तो हमारा मन विचलित होता है और शांति खो देता है।
  2. संतुलित भावनाएँ जरूरी हैं: प्रेम और लगाव होना स्वाभाविक है, लेकिन वह जब तक संतुलित रहता है, तब तक मन स्थिर रहता है।
  3. कर्म पर ध्यान केंद्रित करें: परिणाम की चिंता छोड़कर अपने कर्मों पर ध्यान दें। यही मन की स्थिरता का मूल मंत्र है।
  4. अहंकार और मोह से बचें: आसक्ति अक्सर अहंकार और मोह से जन्म लेती है, जो हमें सत्य से दूर ले जाती है।
  5. आत्मा की पहचान करें: अपने आप को केवल शरीर या मन समझना ही आसक्ति की जड़ है; जब हम अपनी आत्मा की पहचान करते हैं, तो आसक्ति स्वतः कम हो जाती है।

🌊 मन की हलचल

"मैं उस व्यक्ति से इतना जुड़ा हूँ कि उसके बिना जीना मुश्किल लगता है। क्या मैं उसे खो दूंगा? मेरी खुशियाँ उसी पर निर्भर हैं। इस सोच ने मेरे मन को बेचैन कर दिया है। मैं कैसे इस दर्द से बाहर आऊं?"
ऐसे भावनात्मक उलझनों में गीता हमें समझाती है कि यह जुड़ाव स्वाभाविक है, लेकिन उसे अपनी पहचान मत बनने दो। जब हम अपने मन को स्थिर करते हैं, तो दुख और चिंता अपने आप कम हो जाती है।

📿 कृष्ण क्या कहेंगे...

"हे प्रिय, देखो, मैं तुम्हें संसार की माया में उलझते नहीं देख सकता। यह मत भूलो कि सब कुछ अस्थायी है। जो तुम्हारा है वह तुम्हारे कर्मों का फल है, और वह भी एक दिन छूट जाएगा। इसलिए अपने कर्म करो, प्रेम करो, लेकिन आसक्ति से मुक्त रहो। मन को स्थिर रखो, मैं सदैव तुम्हारे साथ हूँ।"

🌱 एक छोटी सी कहानी / उपमा

एक बार एक छात्र ने अपनी परीक्षा के परिणाम को लेकर इतना चिंता की कि वह पूरी तरह से तनावग्रस्त हो गया। उसने अपने गुरु से पूछा, "गुरुजी, मैं इतना क्यों परेशान हूँ?" गुरु ने कहा, "बेटा, तुमने मेहनत की, वह तुम्हारा कर्म है। परिणाम तुम्हारे हाथ में नहीं है। जैसे एक किसान बीज बोता है, लेकिन बारिश और धूप उसकी मर्जी से नहीं होती, वैसे ही फल भी तुम्हारे नियंत्रण में नहीं। बस अपना कर्म करो और फल की चिंता छोड़ दो।"

✨ आज का एक कदम

आज अपने किसी एक कार्य को पूरी निष्ठा और प्रेम से करो, लेकिन उसके परिणाम की चिंता मत करो। देखो, मन कैसा शांत होता है जब तुम केवल कर्म में लीन रहते हो।

🧘 भीतर झांके कुछ क्षण

  • क्या मैं अपने कर्मों को पूरी निष्ठा से कर रहा हूँ या परिणाम की चिंता मुझे विचलित करती है?
  • क्या मेरी भावनाएँ मुझे बांध रही हैं या मुझे मुक्त कर रही हैं?

मन की शांति की ओर पहला कदम
प्रिय शिष्य, याद रखो कि आसक्ति मन का बंधन है, और गीता हमें यही सिखाती है कि बंधनों को तोड़कर ही हम सच्ची स्वतंत्रता और शांति पा सकते हैं। जब तुम अपने कर्मों में लीन हो जाओगे, तब तुम्हारा मन स्थिर होगा, और भावनाएँ तुम्हें नियंत्रित नहीं करेंगी। मैं तुम्हारे साथ हूँ, चलो इस यात्रा को साथ मिलकर आसान बनाते हैं।
शांति और प्रेम के साथ। 🙏🌸

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